सम्यकता की अपेक्षा
निर्वाचन आयोग से कांग्रेस को शिकायतें हैं. नरेन्द्र मोदी के केंद्रीय सत्ता में आने के बाद से उनमें बढ़ोतरी ही हुई हैं.
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इन शिकायतों की जो प्रकृति है, उनसे यह जाहिर होता है कि निर्वाचन आयोग-कांग्रेस के मुताबिक-पारदर्शिता के साथ काम नहीं कर रहा है. वह सत्ता के इशारे पर और विपक्ष के खिलाफ आचरण कर रहा है. कांग्रेस अपने अध्यक्ष राहुल गांधी के साक्षात्कार के प्रसारण पर रोक लगाये जाने से खफा है.
दरअसल, राहुल गांधी ने चुनाव प्रक्रिया खत्म होने के पहले साक्षात्कार दे दिया था. आयोग ने इसे जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 126 (1) (बी) का उल्लंघन मानते हुए उनके इंटरव्यू को रोक दिया. रोक न मानने वाले चैनलों पर केस दर्ज करने का भी निर्देश दे दिया. कांग्रेस इसे चुनाव आयोग का अतिवाद मानती है. जो सत्ता के हाथों की ‘कठपुतली’ बन चुका है.
यह आरोप कांग्रेस के किसी छुटभैये ने नहीं बल्कि उसके जाने-माने विधिवेत्ता व पूर्व गृह-वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी लगाए हैं. इन आरोपों की अपनी सीमा हो सकती है. पर इनके समर्थन में कांग्रेस के पास दृष्टांतों की कमी नहीं हैं, जिनके मुताबिक उसे ‘सचमुच’ लगता है कि निर्वाचन आयोग जैसी स्वायत्त व संवैधानिक संस्था हांकी जा रही है. इनमें तो यही है कि हिमाचल प्रदेश के साथ गुजरात चुनाव की तारीखों को न घोषित किया जाना.
इसके पीछे जो तर्क दिये गए वे लचर किस्म के थे. दूसरे, जिन जनप्रतिनिधित्व कानूनों के तहत राहुल गांधी मामले में तत्पर कार्रवाई की गई, उन्हीं मामलों में सत्ता पक्ष को ‘पुचकारा’ गया.
सी-प्लेन की उड़ान व वोट देकर चिह्नित उंगली लिये पीएम का रोड शो किस आदर्श चुनाव संहिता के दायरे में आता है? इस पर चुनाव आयोग का मौन अब तक नहीं टूटा है. यहां तक कि वोटिंग के समय मौजूद रहे किसी सक्षम अधिकारी में भी यह साहस नहीं हुआ कि वह आगे बढ़कर प्रधानमंत्री को याद दिलाए कि ‘श्रीमान् रोड शो संहिता का उल्लंघन है.
कृपया यह न करें.’ हो सकता है, प्रधानमंत्री को इसका ख्याल न रहा हो और उसकी याद दिलाने पर वे मान जाते. चुनाव प्रचार के दौरान संहिताएं ज्यादा लाचार दिखी हैं. ऐसे में मीडिया की यह चिंता जायज है कि सत्ता से वंचित विपक्ष को अगर संवैधानिक संस्थाएं संरक्षण नहीं देंगी तो यह काम कौन करेगा और किस बिना पर? अब आयोग कह सकता है कि अहमद पटेल के चुनाव में उसने अपना फर्ज निभाया था. यह वाकई निष्पक्ष और निर्भीक आचरण का ऐतिहासिक उदाहरण है. चुनाव आयोग से इसी सम्यक व्यवहार की अपेक्षा हमेशा है.
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