नतीजों का इंतजार

Last Updated 16 Dec 2017 01:19:48 AM IST

अगर एग्जिट पोल के अनुमानों को सच मानकर चलें तो गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनावी नतीजे भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं.


नतीजों का इंतजार

हालांकि एग्जिट पोल हमेशा सच नहीं हुआ करते. इसलिए इनके अनुमानों को अंतिम नहीं माना जा सकता. गुजरात का चुनाव भाजपा और कांग्रेस, दोनों के लिए राजनीतिक प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है. इसीलिए दोनों पार्टियों ने जीत की उम्मीद में अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया. राजनैतिक पर्यवेक्षक यह मान कर चल रहे हैं कि यह चुनाव 2019 के लोक सभा चुनाव का सेमीफाइनल है. अगर भाजपा चुनाव जीतती है तो आगामी लोक सभा चुनाव के लिए उसकी राह आसान हो सकती है.

इसी तरह, कांग्रेस के लिए उसकी खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल हो सकती है. इसमें दो राय नहीं है कि राहुल गांधी ने इस चुनाव में कड़ी मेहनत की. उन्होंने अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर के साथ चुनावी गठबंधन भी किया.

पाटीदार नेता हार्दिक पटेल और कांग्रेस के बीच हुए समझौते का मुख्य सूत्र आरक्षण था. राहुल गांधी ने वादा किया है कि अगर उनकी सरकार बनेगी तो पाटीदारों को आरक्षण दिया जाएगा. दरअसल, यह कांग्रेस पार्टी की रणनीतिक भूल थी क्योंकि यह संभव ही नहीं है कि दलित और ओबीसी इस बात के लिए  राजी होंगे कि उनके कोटे से पाटीदारों को आरक्षण दिया जाए.

इसीलिए यह लगता है कि कांग्रेस का जातीय समीकरण जमीनी स्तर तक पहुंचने में नाकाम रहेगा. प्रदेश में संगठन की दृष्टि से भी पार्टी मजबूत नहीं है. पार्टी के रणनीतिकारों ने समाज के विभिन्न जाति-समूहों के साथ गठबंधन तो बनाए, लेकिन उनकी नींव को पुख्ता करने की दिशा में कोई ठोस काम नहीं किया. अगर चुनाव नतीजे कांग्रेस के पक्ष में नहीं आते हैं, जैसा कि एग्जिट पोल बता रहे हैं, तो पार्टी की हार की एक बड़ी वजह यह हो सकती है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस के मुकाबले भाजपा का चुनावी कौशल बेहतर रहा है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस की ओर से की गई गलतियों को अपने पक्ष में बहुत ही चतुराई से उपयोग किया. कौन हारता है, और किसके सिर पर जीत का सेहरा बंधता है, यह तो आगामी 18 दिसम्बर को पता चलेगा. लेकिन कांग्रेस हारती है, तो ईवीएम का मुद्दा एक बार फिर जोर-शोर से उछाला जाएगा.



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