हल निकालिये

Last Updated 15 Dec 2017 06:54:58 AM IST

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आरोप है कि एनपीए घोटाला तमाम घोटालों से बड़ा है,जो पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार ने विरासत में छोड़ा है.


हल निकालिये

एनपीए यानी नॉन परफॉर्मिंंग एसेट्स यानी डूबत कर्ज. इस भाषण को चुनावी भाषण मानते हुए कांग्रेस ने अपनी आपत्ति दर्ज करा दी है.पर एनपीए का मसला समूचे देश के अर्थतंत्र से जुड़ा मसला है. यह चुनावी राजनीति से बहुत बड़ा है. इसे सिर्फ  चुनाव तक सीमित नहीं किया जा सकता.

इसे समझना चाहिए. एक मोटे अनुमान के मुताबिक देश के सारे बैंकिंग ढांचे में करीब 8 लाख करोड़ रु पये के डूबत कर्ज हैं. इनमें से नब्बे प्रतिशत सरकारी बैंकों के खाते में हैं. यानी सरकारी बैंकों के खाते डूबनेवाले खाते ज्यादा आये हैं. मोदी का आरोप है कि सरकारी बैंकों पर मनमोहन सरकार ने दबाव डालकर अपने चहेते उद्योगपतियों को कर्ज दिलवा दिया. यह कर्ज डूब गया.

डूबत कर्ज का एक बहुचर्चित मामला तो लगातार देखा ही जा रहा है-विजय माल्या का. विजय माल्या की कंपनियों पर करीब आठ हजार करोड़ रु पये का एनपीए है. विजय माल्या लंदन में बैठे हैं. उनको भारत में लाना आसान काम नहीं है. वह भारत आ भी जाएं तो उनसे करीब आठ हजार करोड़ रु पये की वसूली लगभग असंभव है. विजय माल्या राजनीतिक तौर पर बहुत असरदार कारोबारी रहे हैं. प्राय: सभी बड़ी पार्टियों में उनके खैरख्वाह रहे हैं.

तो जब मोदी कहते हैं कि डूबत कर्जों की जिम्मेदारी मनमोहन सरकार की बनती है, तो एक अर्थ में गलत नहीं कहते हैं. बैंकिंग सेक्टर, खासकर सरकारी बैंकों को सुचारु  तौर पर चलाने की जिम्मेदारी मनमोहन सरकार की थी, जो लंबे अरसे तक सत्ता में रही. पर कानूनन इसे साबित करना असंभव है कि एनपीए मनमोहन सरकार की चहेता-पसंद कर्ज-नीतियों की वजह से उपजे हैं. हां, मोदी ऐसे आरोपों के जरिये कुछ राजनीतिक उपलब्धि जरूर हासिल कर सकते हैं.

पर उनको यह समझना चाहिए कि वह साढ़े तीन साल से ज्यादा से सत्ता में हैं, उनकी पार्टी 2019 में भी लोक सभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है. तो मोदी को एनपीए की समस्या से निपटने की एक ठोस कार्ययोजना पेश करनी चाहिए. अपनी नाकामयाबियों के लिए मनमोहन सरकार सजा पा चुकी है, वह सत्ता से बाहर है. तो मसले का हल निकालने की अब जिम्मेदारी मोदी की है. देश को उनसे हल की उम्मीद है न कि सरकार बनाने के इतने सालों बाद भी मनमोहन सरकार के खिलाफ उनके आरोप-पत्र की.



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