अय्यर का ‘नीच’
मणिशंकर अय्यर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जिस तरह नीच आदमी शब्द प्रयोग किया वह बिल्कुल अस्वीकार्य है.
अय्यर का ‘नीच’ |
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की सराहना करनी होगी कि उन्होंने तुरंत उनको माफी मांगने को कहा. पहले लगा कि माफी मांगने भर से मामला खत्म हो जाएगा. किंतु अय्यर की माफी में किंतु-परंतु था.
उनका यह बहाना किसी के गले नहीं उतरता कि वे हिन्दी भाषी नहीं हैं, इसलिए अंग्रेजी के ‘लो’ शब्द का उन्होंने अनुवाद किया. अय्यर अच्छी हिन्दी जानते हैं, और वे जो बोल रहे थे उसका अर्थ उनको अच्छी तरह पता था. वास्तव में उन्होंने पहले भी मोदी के बारे में गलत टिप्पणियां की हैं.
दूसरे, चुनाव का समय है और कांग्रेस को पता है कि ऐसे बयानों का भाजपा अपने पक्ष में सहानुभूति पाने के लिए पूरा उपयोग करेगी. ऐसा ही हुआ. जब स्वयं मोदी ने अपने भाषण में इसे मुद्दा बनाया तो कांग्रेस के रणनीतिकारों के सामने स्पष्ट हो गया कि किंतु-परंतु और चूंकि वाली माफी से काम नहीं चलेगा. कांग्रेस ने उन्हें निलंबित कर बयान से हुई क्षति की भरपाई करने की कोशिश की है.
यह कदम कांग्रेस की क्षति को कितना कम कर पाएगा, कहना कठिन है. चुनाव नहीं होता तो शायद अय्यर बच भी जाते. लेकिन यह मानने में संशय नहीं है कि इससे कांग्रेस ने एक सख्त संदेश दिया है. जिस तरह से मोदी के खिलाफ उनके नेता बयानवाजी करते रहे हैं, उस पर इससे बाद रोक लग जाएगी. राहुल ने इससे संदेश दे दिया है कि निजी हमलों में अमर्यादित शब्दों के प्रयोग पार्टी स्वीकार नहीं करेगी. उम्मीद करनी चाहिए कि दूसरी पार्टयिां भी अनुसरण करेगी. राजनीति के लिए इसे अच्छा संकेत माना जाना चाहिए.
हाल के समय में राजनीति में बयानों का स्तर इतना नीचे गिरा है कि लगता ही नहीं कि हम संसदीय लोकतंत्र में रह रहे हैं. ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग होने लगा है, जो सभ्य समाज में स्वीकर नहीं. अय्यर का बयान इसी श्रेणी का था. कहने की जरूरत नहीं कि राजनीति में अय्यर अकेले ऐसे नहीं हैं. ऐसे लोगों की राजनीति में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
राजनीति में मतभेद स्वाभाविक है, किंतु विरोधियों की आलोचना करते हुए भी शब्द-शालीनता बरती जानी चाहिए. अलग-अलग दलों में होने का मतलब एक दूसरे का दुश्मन या एक दूसरे से घृणा करना नहीं है. आप एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी हैं, और प्रतिस्पर्धा हमेशा स्वस्थ होनी चाहिए.
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