युग का अंत
करीब एक सप्ताह तक ना-नुकर करने के बाद आखिरकार, जिम्बाब्बे के राष्ट्रपति रॉबर्ट मुगाबे को अपने पद से इस्तीफा देना ही पड़ा.
युग का अंत |
अपना पद छोड़कर उन्होंने राजनीतिक सूझ-बूझ का परिचय दिया और अपनी क्रांतिकारी छवि की बची-खुची लाज बचा ली है क्योंकि वहां की संसद में उनके खिलाफ लगाए गए महाभियोग के प्रस्ताव पर चर्चा चल रही थी, और उन्हें बर्खास्त करने की परिस्थितियां तैयार हो गई थीं.
उनके इस्तीफे के साथ ही सैंतीस वर्षो तक निर्बाध ढंग से शासन करने वाले क्रांतिकारी नेता के राजनीतिक सफर का अंत हो गया. कुछ दिनों पहले ही वहां की सेना ने सत्ता पर काबिज होकर इस उम्रदराज नेता की सारी शक्तियां छीन ली थीं.
हालांकि यह सैनिक तख्ता पलट रक्तहीन था, और सेना ने इस क्रांतिकारी नेता के सम्मान को बरकरार रखा. उनके सत्ता से हटने के बाद यह सवाल लाजिमी है कि अल्पसंख्यक श्वेतों के दमनकारी-शोषनकारी शासन से अपने देश को आजादी दिलाने वाले इस क्रांतिकारी नेता को इतिहास किस रूप में याद रखेगा? उन्होंने अपने देश को आजाद कराने के लिए जो संघर्ष किया, वह बेमिसाल है.
देशवासियों के लिए वह नायक हैं, और आगे भी रहेंगे, लेकिन पश्चिमी देश और विशेषकर इंग्लैंड उन्हें खलनायक के बतौर याद रखेगा. इसकी वजह मुगाबे हैं, जिन्होंने श्वेतों को फॉर्म हाउसों से बेदखल करके उनके व्यापारिक हितों को चोट पहुंचाई थी. हालांकि उनके कदम से जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्था बुरी तरह लड़खड़ाई जो आज तक संभल नहीं सकी है.
पश्चिमी देश जिम्बाब्वे की अर्थव्यवस्था को गर्त में पहुंचाने का जिम्मेदार मुगाबे को मानते हैं. लेकिन उन्होंने दमन के जुड़वां भाइयों-पूंजीवाद और उपनिवेशवाद-के खिलाफ जो संघर्ष किया उसे इतिहास कैसे भुला सकता है? एक शिक्षक से क्रांतिकारी नेता बने मुगाबे का शिक्षा के क्षेत्र में किया गया योगदान अद्वितीय है. अफ्रीकी देशों में जिम्बाब्वे की शिक्षा दर सबसे अधिक है.
यहां 89 फीसद लोग साक्षर हैं, जिसे उनकी महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों के बतौर देखा जाना चाहिए. सत्ता के मोहपाश में बंधे रहने पर उनके क्रांतिकारी अतीत पर धब्बा जरूर है, लेकिन इससे देश के प्रति उनका योगदान कमतर नहीं हो जाता. जिम्बाब्वे के पर्याय बन चुके मुगाबे की विरासत को आगे ले जाना आने वाले शासकों के लिए बड़ी चुनौती साबित होगी.
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