गर्वीली जीत यह

Last Updated 23 Nov 2017 03:39:50 AM IST

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत के न्यायाधीश दलबीर भंडारी की विजय यों ही नहीं हुई है.


अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में भारत के न्यायाधीश दलबीर भंडारी (file photo)

वास्तव में जिस ढंग की रस्साकशी कई दिनों से चल रही थी उसे देखते हुए इसे भारत की बड़ी कूटनीतिक विजय के रूप में याद किया जाएगा.

ब्रिटेन अपने प्रतिनिधि को फिर से निर्वाचित कराने पर अड़ गया था और जितनी कूटनीतिक कलाबाजियां संभव थीं कर रहा था. उसमें भारतीय भंडारी के दोबारा निर्वाचित होने पर एक प्रकार का ग्रहण लगता दिख रहा था.

किंतु भारतीय कूटनीति इतनी सघनता से सक्रिय रही कि ब्रिटेन को अपने उम्मीदवार का नाम वापस लेना पड़ा. हालांकि ब्रिटेन ने इसे अपनी पराजय नहीं बताया है, बल्कि भारत को मित्र देश बताते हुए दलबीर भंडारी की विजय पर खुशी जताई है, पर सच कुछ और ही है. 12 दौर तक मतदान का पहुंचना ही बताता है कि लड़ाई कितनी तगड़ी थी.

भारत की सघन कूटनीति का परिणाम था कि दलबीर भंडारी को संयुक्त राष्ट्रसंघ की महासभा में दो तिहाई सदस्यों का समर्थन मिला, लेकिन सुरक्षा परिषद में वे चार मतों से पीछे रह गए. तो मामला महासभा बनाम सुरक्षा परिषद का हो गया था. सुरक्षा परिषद के शेष चार स्थायी सदस्य अमेरिका, फ्रांस, चीन और रूस भी ब्रिटेन के साथ खड़े थे. किंतु महासभा में किसी की दाल नहीं गल रही थी.

सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की चिंता यह थी कि अगर आज ब्रिटेन फंस रहा है तो कल हमारे साथ भी ऐसा हो सकता है. इसलिए वे भी आसानी से पीछे हटने को तैयार नहीं थे. अंत में ब्रिटेन ने संयुक्त अधिवेशन बुलाने तक का प्रस्ताव रखा. किंतु अन्य स्थायी सदस्यों को लगा कि इससे एक गलत परंपरा कायम होगी और मामले को यहां तक खींचने से तनाव के हालात पैदा होंगे.

इसलिए उन्होंने इससे सहमति व्यक्त नहीं की. इसमें भी भारतीय कूटनीति की भूमिका थी. भारत के राजनयिक स्थायी सदस्यों के भी सपंर्क में थे. 1946 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के सक्रिय होने के बाद से यह पहला अवसर होगा कि उसमें किसी एक स्थायी सदस्य का प्रतिनिधि नहीं होगा. इससे भारत की विजय का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है.

निश्चय ही भारत का विदेश मंत्रालय इसके लिए अभिनंदन का पात्र है. हम इस विजय को भारत के लिए सुरक्षा परिषद की सदस्यता के दरवाजे तक नहीं खींचना चाहते, पर दुनिया में बदलते हुए समीकरण का परिचायक तो है ही. आखिर भारत को अंत में महासभा के 183 और सुरक्षा परिषद के सभी सदस्यों का समर्थन मिलना कुछ तो संकेत देता है.



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