कांग्रेस के अच्छे दिन!
आखिरकार, एक लंबी विचार प्रक्रिया से गुजरने के बाद कांग्रेस कार्यसमिति ने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव कार्यक्रम का प्रस्ताव पारित करके राहुल गांधी के निर्विरोध पार्टी अध्यक्ष चुने जाने का रास्ता साफ कर दिया.
कांग्रेस के अच्छे दिन! |
इसमें अब संदेह की तनिक भी गुंजाइश नहीं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के पहले ही राहुल के सिर पर अध्यक्ष का ताज होगा.
ऐसा इसलिए कि सभी जानते हैं कि कांग्रेस पार्टी में गांधी-नेहरू परिवार को कोई चुनौती नहीं दे सकता और अगर कोई चुनौती देने का साहस करता भी है, तो उसका हश्र जितेंद्र प्रसाद से अलग नहीं होगा. यह विडंबना ही है कि आजादी की ऐतिहासिक विरासत वाली पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र एक सिरे से गायब है.
आजादी के पहले कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र पूरी तरह बहाल था. यही वजह थी कि 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में सुभाष चंद्र बोस ने पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की घोषणा यह जानते हुए भी की थी कि उनका विरोध होगा. महात्मा गांधी ने डॉ. पट्टाभिसीतारमैय्या को अपना उम्मीदवार बनाकर चुनाव मैदान में उतारा. चुनाव परिणाम हैरत करने वाला रहा क्योंकि गांधी जैसे कद्दावर नेता का उम्मीदवार हार गया. पट्टाभिसीतारमैय्या की हार को महात्मा गांधी ने अपनी हार बताया. कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र की इससे बेहतर मिसाल और क्या हो सकती है?
पार्टी की यही खूबियां थीं, जिनके कारण वह आजादी के बाद वर्षो तक केंद्र और राज्यों में सत्तारूढ़ रही. लेकिन जैसे-जैसे कांग्रेस अपनी भीतरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया से दूर होती गई उसके पराभव का सिलसिला भी शुरू हो गया. अब तो यह गांधी-नेहरू परिवार की जेबी संस्था बन कर रह गई है. हालांकि अभी भी पूरे देश में इसका जनाधार मौजूद है, और इसीलिए भाजपा को कांग्रेस से ही सबसे ज्यादा डर है. लोकतंत्र की सफलता के लिए अनिवार्य शतरे में से एक विपक्ष का सशक्त होना भी है.
उम्मीद की जानी चाहिए कि राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की बहाली की प्रक्रिया आरंभ होगी. राहुल नौजवान हैं. अध्यक्ष का पद संभालने के पहले उन्हें राजनीति का अच्छा खासा प्रशिक्षण भी मिल चुका है. अपनी मेहनत और ऊर्जा के बलबूते उन्होंने गुजरात चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी को खासी चुनौती भी दी है. कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताअों को उम्मीद है कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी के अच्छे दिन आएंगे.
Tweet |