सम-विषम पर सियासत

Last Updated 13 Nov 2017 05:17:19 AM IST

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र ऐसे ही मौत की भट्ठी में तब्दील नहीं हो रहा है.


सम-विषम पर सियासत

राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में पर्यावरण को लेकर संजीदा न होना और बात-बात पर सियासी पैतरा अख्तियार करने का ही नतीजा है कि आज यह पूरा इलाका साफ-सुथरी हवा लेने को तरस रहा है. बेहद खतरनाक हो चुके हालात के बावजूद किसी भी दल ने राजनीति से ऊपर उठकर स्वास्थ्य हितों की बात नहीं की है. लेकिन सबसे ज्यादा किरकिरी दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने कर रखी है.

पिछले सात-आठ दिनों से दम घुटने के माहौल से निजात पाने के लिए एक अदद योजना तक इस सरकार के पास नहीं है. थक-हार कर वही पुराना ऑड-ईवन का फामरूला लाने के कुछ ही देर बाद उसे वापस लेना इसी तथ्य को उजागर करता है कि दिल्ली सरकार के एजेंडे में जनता की परेशानी और उसके निदान के उपाय नहीं हैं.

ठीक है, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने ऑड-ईवन में दोपहिया वाहनों और महिलाओं को भी शामिल करने का निर्णय दिया लेकिन एनसीआर की मौजूदा स्थिति को देखें तो ऐसे कठिन विकल्पों को आजमाना ही समझदारी है. जहां तक बात सार्वजनिक परिवहन पर पड़ने वाले दबाव की है, तो दिल्ली सरकार को शासन किए भी तीन साल का वक्त हो चुका है. लेकिन उसने इस ओर से आंखें मूंद रखी थी.



‘पल में तोला, पल में माशा’ वाली कहावत दिल्ली सरकार पर भी लागू होती है. किसी एक निर्णय पर पहुंचना और उसपर दृढ़ होना सियासी तौर पर समझदार सरकार की निशानी होती है. तुरंत में ऑड-ईवन लागू करने का फैसला और कुछ ही देर में इसे वापस लेने से साफ तौर पर यही प्रतीत होता है कि सरकार ने बहुमूल्य तीन साल में सिर्फ वक्त ही बर्बाद किया है.

सार्वजनिक परिवहन की स्थिति बद-से-बदतर हो चुकी है. महज महिला सुरक्षा की आड़ लेकर किसी निर्णय को रद्द करना और दूसरे दलों पर आरोप मढ़ने का नुकसान फौरी तौर पर भले पर्यावरण पर पड़े परंतु लंबे समय में यह उस सरकार का है, जो अपनी कमियां छिपाने के नित नये उपाय करती है.

अलबत्ता अब और समय बर्बाद किए बिना हर किसी को आगे आकर प्रदूषण को मिटाने का संकल्प और जिजिविषा दिखानी होगी, वरना आने वाली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी.

 

 

संपादकीय


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