फारुक के बिगड़े बोल

Last Updated 13 Nov 2017 05:26:16 AM IST

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला जम्मू कश्मीर के बारे में कई बार ऐसे बयान देते हैं, जिनका विवादास्पद बनना स्वाभाविक है.


फारुक अब्दुल्ला के बिगड़े बोल

इस समय उनका यह बयान सुर्खियों में है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) पाकिस्तान का है और उसके पास ही रहेगा. यह बयान संसद के उस संकल्प के विरुद्ध है, जिसमें पीओके को हर हाल में वापस लेने की बात कही गई है. ऐसे बयान से देश भर में गुस्सा पैदा होता है, क्योंकि कोई भारतीय सामान्यत: यह स्वीकार करने को तैयार नहीं होगा कि कश्मीर के जिस भाग को पाकिस्तान ने बरसों पहले जबरन कब्जा कर लिया उसे उसके पास ही छोड़ दिया जाए. वे पाकिस्तान के पास नाभिकीय अस्त्र होने की बात करते हैं.

क्या भारत के पास नाभिकीय अस्त्र नहीं है? क्या इसके डर से हम अपने भूभाग की अखंडता को पूर्ण करने का प्रयत्न नहीं करेंगे? जब एक बार महाराजा हरि सिंह ने संपूर्ण जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय के समझौते पर हस्ताक्षर कर दिया तो फिर उसका सम्मान पाकिस्तान को भी करना चाहिए था. इसलिए फारुक ऐसा बयान क्यों दे रहे हैं यह समझना मुश्किल है? इसके पहले वे गुस्से में प्रश्न की शैली में यह भी बोल चुके हैं कि क्या पीओके आपके बाप का है? इसके जवाब में देश भर से आवाज आई कि हां वह कश्मीर हमारे बाप का है.



उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर के मौजूदा हालात के लिए भारत जिम्मेवार है, जिसने कश्मीरियों के साथ ठीक बर्ताव नहीं किया. उनके अनुसार कश्मीरियों ने प्रेम, जम्हूरियत व अपनी पहचान की गारंटी के लिए हिन्दुस्तान का विलय किया था लेकिन हिन्दुस्तान ने कश्मीरियों की कद्र नहीं की और हालात बिगड़ गए. उनसे यह पूछा जाएगा कि भारत ने कश्मीरियों के कद्र करने में कहां कमी की? फारुख स्वयं और उनके पिता से लेकर पुत्र तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं.

अगर उन्हें लगा कि भारत कश्मीर के साथ ठीक व्यवहार नहीं कर रहा है तो उन्होंने क्या किया? फारुक और उमर अब्दुल्ला तो प्रदेश निकलकर केंद्र तक में मंत्री बने. ऐसे व्यक्ति का इस तरह का बयान कृतघ्नता की श्रेणी का माना जाएगा. यह अलगावादियों की भाषा है, जिसे फारुख आवाज दे रहे हैं.

किसी प्रदेश की जनता की वाजिब शिकायतें अलग बात है और यह कहना कि कश्मीर के साथ भारत का व्यवहार ठीक नहीं था; प्रदेश को अलग तरह का और विशिष्ट मानने की ओर इंगित करता है, जिसे हम स्वीकार नहीं कर सकते.  

 

 

संपादकीय


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