अदालत जारी है..

Last Updated 10 Nov 2017 04:20:58 AM IST

राजनीति में बड़ी महत्त्वाकांक्षा रखने वाले अरविंद केजरीवाल जब से दिल्ली के मुख्यमंत्री बने हैं, यह विवाद ज्यादा गहराता गया है कि संघ शासित प्रदेश दिल्ली के शासन-सूत्र की वास्तविक शक्तियों का स्वामी कौन है?


अदालत जारी है..

दिल्ली की निर्वाचित सरकार या केंद्र का मनोनीत राज्यपाल?

कानून और संविधान के महत्त्वपूर्ण पहलुओं से जुड़े इस विवाद की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ कर रही है. इस दौरान शीर्ष अदालत की टिप्पणियों से इसके संकेत मिल रहे हैं कि निर्वाचित सरकार के प्रति वह संवेदनशील है और उसके कामकाज के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाने की पक्षधर है.

हालांकि इसका यह भी मतलब निकाला नहीं जाना चाहिए कि शीर्ष अदालत दिल्ली सरकार को वे सारी शक्तियां देने की इच्छुक हैं, जो दूसरे पूर्ण राज्यों को प्राप्त है. सुप्रीम कोर्ट केजरीवाल सरकार के वकील गोपाल सुब्रह्मण्यम के उस तर्क से सहमत नहीं है कि कैबिनेट की सलाह उपराज्यपाल पर बाध्यकारी होती है. संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है.

लिहाजा, दिल्ली सरकार के कामकाज पर उपराज्यपाल की मोहर अनिवार्य है. बावजूद इसके शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार के रोजमर्रा के कामकाज में उपराज्यपाल की दखलअंदाजी को अनुचित माना है. इसका यह भी अर्थ निकाला जा सकता है कि यदि दिल्ली सरकार संविधान के दायरे में रह कर कोई काम करती है तो उपराज्यपाल को उस पर दखल देने का कोई हक नहीं है.

दरअसल, कानून, भूमि और पुलिस के मसले पर दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच ज्यादा टकराव रहा है और ये तीनों विषय गृह मंत्रालय के अधीन है. यह कहा जा सकता है कि केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच विवाद का मूल कारण दोनों के बीच शक्तियों का विभाजन अस्पष्ट न होना उतना नहीं है, जितना कि राजनीतिक अहं का होना है. दिल्ली में 15 साल शीला दीक्षित की सरकार रही है. उस दौरान वास्तविक अथरे में दिल्ली का विकास हुआ. तब उन्हें भी वे शक्तियां और अधिकार प्राप्त थे, जो आज केजरीवाल के पास है.

हालांकि यह कहा जा सकता है कि दिल्ली और केंद्र दोनों में कांग्रेस की सरकार थी, अलबत्ता शीला दीक्षित को केंद्र का सहयोग प्राप्त था. लेकिन यह भी नहीं माना जा सकता कि केजरीवाल सरकार को वह सहयोग प्राप्त नहीं है. सहयोग परस्पर होता है. यदि केजरीवाल टकराव को मुख्य सियासी हथियार नहीं बनाये होते तो यह विवाद कोर्ट तक नहीं पहुंचता.



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