नौकरशाहों का मूल्यांकन
आम तौर पर भारत में नौकरशाही को भ्रष्टाचार और लालफीताशाही का पर्याय माना जाता है.
नौकरशाहों का मूल्यांकन |
जनता और शासन से जुड़ीं हर क्रियाकलाप और गतिविधियों को हमारे यहां की नौकरशाही लटकाकर रखती है या उसमें असंख्य अड़ंगे लगाती है. यह सब सालों से चलता आ रहा है.
एक तरह से कह सकते हैं कि भारतीय नौकरशाही के काम करने के तौर-तरीके जनता की जरूरतों से बिल्कुल मेल नहीं खाते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने भी एकाध मौकों पर भारतीय नौकरशाही के काम करने के तरीके और उसके चलन पर नाक-भौं सिकोड़ चुकी है. यहां तक देश की सबसे शीर्ष जांच एजेंसी केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को राजनीतिकों का ‘तोता’ तक कह चुकी है. ऐसी टिप्पणी साफ-साफ इशारा करती है कि देश में ब्यूरोक्रेसी किस र्ढे पर चलती है और इसे कैसे, किस तरह और कौन लोग हांक रहे हैं?
निश्चित तौर पर सत्तारूढ़ दल के लिए अफसरों और बाबुओं की चापलूसी पास का फायदा देती हो मगर कुल मिलाकर यह नुकसान ज्यादा देती है. लेकिन अब सरकार इसे पूरी तरह बदल डालने की सोच रही है. नौकरशाहों का 360 डिग्री मूल्यांकन करने की सरकार की सोच के पीछे असली वजह विकास की गाड़ी को सरपट दौड़ाने के साथ-साथ नौकरशाही की सोच में व्यापक बदलाव लाना भी है.
अफसर और बाबू काम नहीं करते हैं और आरामतलब होने की आदत से सरकार की उस सोच को भी झटका लगा है, जिसका विजन केंद्र की मोदी सरकार ने तीन साल पहले सोचा था. लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने की पहल कुछ अंतराल पूर्व अमल में लाई गई है. अब चापलूसी और पैरवी कर मनचाही पोस्टिंग कराना बीते वक्त की बात हो जाएगी.
कार्यकुशलता ही पहला और अंतिम पैमाना मानी जाएगी. वाषिर्क गोपनीय रिपोर्ट यानी एसीआर की महत्ता भी कम हो जाएगी. इसके बदले प्रभावी तरीके से कामकाज का निपटारा और त्वरित निर्णय लेने को अधिकारी का प्लस प्वाइंट माना जाएगा.
एक तरह से कह सकते हैं कि अफसरों का संपूर्ण मूल्यांकन कराया जाएगा. इन सब कवायदों के बावजूद नौकरशाही में राजनीतिक नियंत्रण के हावी रहने को कैसे कम किया जाएगा, इस बारे में भी सोचना होगा, क्योंकि बदलाव लाने के लिए क्रांति जरूरी है.
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