अभी रहें रोहिंग्या
म्यांमार में रोहिंग्या संकट का आयाम विस्तृत होता जा रहा है. रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ जारी सैन्य अभियान को लेकर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के प्रमुख जैद राद अल-हुसैन की चिंता गैर-वाजिब नहीं है.
अभी रहें रोहिंग्या |
कहा जा रहा है कि रोहिंग्या लोगों के घरों को जलाया जा रहा है.
हिंसा की शुरुआत ‘अराकन रोहिंग्या साल्वेशन आर्मी’ (एआरएसए) नामक आतंकवादी संगठन ने की थी.
पिछले 25 अगस्त को पुलिस चौकी और सेना के ठिकानों पर हमला किया गया. अब सेना और सुरक्षा बल इनके खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं. सच है कि रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ वहां की सरकार का रुख अमानवीय रहा है. उन्हें नागरिकता से वंचित रखा गया है.
ऐसे में रोहिंग्या समुदाय के आक्रोश और गुस्से को जायज कहा जा सकता है, लेकिन आतंकवादी गतिविधियों का समर्थन नहीं किया जा सकता. इतना जरूर है कि रोहिंग्या संकट से निपटने के सरकार के तौर-तरीकों का समर्थन नहीं किया जा सकता. इसीलिए वहां की स्टेट काउंसलर आंग सान सू की को अंतरराष्ट्रीय आलोचना झेलनी पड़ रही है.
कुछ लोग उनसे शांति का नोबेल पुरस्कार वापस लेने की मांग भी कर बैठे हैं. रोहिंग्या संकट का एक महत्त्वपूर्ण पहलू भारत भी है. दोनों देशों के सुरक्षा हित आपस में जुड़े हैं. जाहिर है कि म्यांमार में जारी इस संकट से भारत अछूता नहीं रह सकता.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हाल में म्यांमार की यात्रा से लौटे हैं. उन्होंने वहां आतंकवादी हिंसा की निंदा की. सरकार की कार्रवाई का समर्थन किया. रोहिंग्या समुदाय के बारे में उनकी चुप्पी को लेकर एक वर्ग ने उनकी आलोचना भी की, लेकिन समझना चाहिए कि यह संकट म्यांमार का आंतरिक मामला है, और राष्ट्रीय हित के भी कुछ तकाजे होते हैं.
हां, इतना जरूर है कि गृह राज्य मंत्री किरन रिजीजू के उस बयान का समर्थन नहीं किया जा सकता जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत में रोहिंग्या अवैध प्रवासी हैं, और उन्हें वापस भेजा जाएगा. दरअसल, उनका बयान तब आया जब म्यांमार में रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ हिंसा हो रही है. रिजीजू का बयान लोकतांत्रिक मूल्यों और मानवीय गरिमा के प्रतिकूल कहा जा सकता है.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के प्रमुख जैद हुसैन ने भी उनके बयान की निंदा की है. भारत इस क्षेत्र का बड़ा और शक्तिशाली देश है. उससे अपेक्षा की जाती है कि इस समुदाय के प्रति संवदेनशील रुख अपनाए. आखिर, वे इसी धरती के पुत्र हैं.
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