छवि बचाने की कवायद

Last Updated 22 Aug 2017 12:46:52 AM IST

मुजफ्फरनगर के खतौली में हुए उत्कल एक्सप्रेस हादसे में शुरुआती जांच के बाद ही रेल मंत्रालय ने फौरी कार्रवाई करते हुए रेलवे बोर्ड में सचिव स्तर के अधिकारी समेत कुल आठ अधिकारियों को दंडित करके डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास किया है.


खतौली रेल हादसा

इससे पहले गोरखपुर के अस्पताल में भीषण त्रासदी हुई जिससे पीड़ित परिवार अभी तक उबर नहीं पाए  हैं. इन दोनों ही त्रासदी में उच्च स्तर पर व्याप्त प्रशासनिक लापरवाही की समानताएं देखी जा सकती हैं.

दोनों ही घटनास्थल उत्तर प्रदेश के हैं, जहां से लोक सभा की सबसे ज्यादा अस्सी सीटें हैं. जाहिर है, इन घटनाओं से भाजपा सरकार की छवि पर जो खरोंचे आई हैं, उनसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मिशन 2019 भी प्रभावित होगा.

पहली नजर में ऐसा लगता है कि लगातार हो रहीं रेल दुर्घटनाओं से रेल मंत्रालय और केंद्र सरकार पर लग रहे दाग धोने के लिए ही इतने बड़े स्तर पर कार्रवाई की गई. रेल मंत्री सुरेश प्रभु की ओर से लगातार यह दावा किया जा रहा है कि रेलवे सुरक्षा ढांचे को बेहतर बनाने का प्रयास कर रही है.

बावजूद इसके पिछले तीन सालों में छोटी-बड़ी पचीस से ज्यादा दुर्घटनाएं हो चुकी हैं. इसका साफ मतलब है कि रेल मंत्रालय के दावों और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क है. थोड़ी देर के लिए यह मान भी लिया जाए कि रेल के इतिहास में पहली बार रेलवे बोर्ड के सचिव स्तर के अधिकारी को दंडित किया गया है, तो क्या इतना भर से ही संतोष कर लिया जाना चाहिए.

दरअसल रेलवे ही नहीं, अन्य महकमों में भी ऊपर के स्तर पर व्याप्त घोर प्रशासनिक लापरवाही नीचे तक आते-आते अराजकता में तब्दील होती जा रही है. ऐसे में कोई कैसे दावा कर सकता है कि पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में भाजपा के शासन में गुणात्मक सुधार आया है, जहां की लापरवाही का सीधा असर आम जनता पर होता है.

लिहाजा, रेल मंत्रालय को यदि रेलवे और उसमें सफर करने वाले यात्रियों की वास्तविक चिंता है, तो बड़े स्तर पर प्रशासनिक सुधार करना होगा. यही बात सरकारी अस्पतालों पर भी लागू होती है. सरकार इन दोनों क्षेत्रों के लिए प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन  करे और उसकी सिफारिशों को सौ फीसद लागू करे.



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