जिम्मेदार कौन
यात्रियों के लिए दुर्भाग्यशाली हुआ कलिंग उत्कल एक्सप्रेस के दुर्घटनाग्रस्त होने के कारणों को समझने के बाद सहसा विश्वास ही नहीं होता कि ऐसा भी हो सकता है.
रेल हादसे का जिम्मेदार कौन (फाइल फोटो) |
जितनी जानकारी अभी तक आई है खतौली स्टेशन के पास रेलवे लाइन की मरम्मत का काम चल रहा था. जाहिर है, वहां से गुजरने के पहले मरम्मत करने वालों को भी जानकारी होनी चाहिए और रेलवे के चालक को भी. चालक रेल की गति कम करता और वहां मरम्मत करने वाले रेल के गुजरने लायक स्थिति बना लेते. कहा जा रहा है कि दोनों काम नहीं हुआ. रेल को 15-20 किमी प्रतिघंटा की धीमी गति से जानी चाहिए जबकि वह 105 किमी की गति से चल रही थी. इसमें उसका दुर्घटनाग्रस्त होना स्वाभाविक था.
14 डिब्बे पटरी से उतर गए और कुछ डिब्बे तो निकट के मकान में घुस गए. यह तो संयोग कहिए कि रेल अपने गंतव्य हरिद्वार के काफी निकट था इसलिए उस पर यात्रियों की संख्या कुछ कम थी, अन्यथा हताहतों की संख्या रिकॉर्ड पार कर सकती थी. इसी तरह जिस इंटर कॉलेज के भवन में डिब्बा घुसा उसमें उस समय कोई छात्र या कर्मचारी नहीं था.
खतौली स्टेशन के आगे की पटरी लंबे समय से खराब है और वहां ट्रेनों की गति कम करा दी जाती है. यह भी नहीं किया गया. कुल मिलाकर स्पष्ट रूप से यह रेलवे की आपराधिक लापरवाही का मामला है. हालांकि इसमें जिम्मेवारी दूसरों पर डालने का निंदनीय प्रयास हो रहा है. खतौली स्टेशन के अधीक्षक कह रहे हैं कि उनको लाइन के मरम्मत की जानकारी नहीं थी.
इंजीनियरिंग विभाग के जिम्मे मरम्मत का काम होता है और उसने सूचना दी ही नहीं. पता नहीं सच क्या है? किंतु इससे यह तो पता चलता है कि रेलवे किस तरह काम कर रही है? क्या जिनके परिजन बिछड़ गए उनको इससे सांत्वना मिल जाएगी? जो घायल हो गए या जीवन भर के लिए अपंग हो गए उनकी टीस कम हो जाएगी?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रेलवे में पिछले साढ़े तीन सालों में व्यापक सुधार होने का दावा कर रहे हैं. सुरेश प्रभु की पीठ भी इसके लिए वे कई बार थपथपा चुके हैं. पर इस प्रकार का हादसा ऐसे तथाकथित सुधारों की पोल खोल देता है. रेलवे की सबसे पहली प्राथमिकता यात्रियों की सुरक्षा होनी चाहिए. जब यही नहीं है तो फिर किस काम का सुधार? इस तरह की दुर्घटनाएं यदि हो रही हैं तो रेलवे को समझना चाहिए कि वह गंभीर बीमारी से ग्रस्त है.
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