कैसा गो प्रेम?

Last Updated 21 Aug 2017 05:30:24 AM IST

भाजपा शासित छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में गोशाला में बड़ी संख्या में मौत से एक बार फिर गायों को लेकर सरकार और पार्टी की संजीदगी का पता चलाता है.


ये कैसा गो प्रेम?

गोशालों में गायों की मौत की यह पहली घटना नहीं है. इससे पहले राजस्थान के जालौर जिले में कुल 615 गायों की मौत हो गई. वहीं राजस्थान के सिरोही जिले में 200 गायें मृत पाई गई. ज्यादातर मौतें चारे और पानी के अभाव में हुई हैं. दवा-दारू का अभाव भी एक अहम वजह रही है. छत्तीसगढ़ के दुर्ग की घटना इस मामले में रोष और चिंता का भाव पैदा करती है क्योंकि इस गोशाला का कर्ता-धर्ता और कोई नहीं भाजपा का नेता है. यह भी कम आश्चर्यजनक नहीं है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने कुछ महीने पहले कहा था कि गोवंश को नुकसान पहुंचाने वालों को फांसी पर लटका दिया जाएगा.

दरअसल, जितने भाजपा शासित राज्य हैं, वहां गायों को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रियता देखी गई है. खासतौर पर केंद्र में नरेन्द्र मोदी के सत्तासीन होने के बाद से गोवंश का कारोबार करने वालों और गाय के नाम पर आतंक मचाने वालों की पौ-बारह हो गई है. ऐसी कई वारदातों की साक्षी देश की जनता रही भी है. मगर गाय की सेवा करने के वजिब और सच्चे रास्ते के बजाय उसके नाम पर खूनखराबा और राजनीति करना शायद ज्यादा पसंद और फायदे की चीज बन गई है.



सेवा भाव की जगह नफरत की सियासत फिजां में तैर रही है. करुणा और ममत्व के जिस भाव के चलते गाय को माता का दर्जा मिला है, उसकी धज्जियां उड़ाई जा रही है. और यह सबकुछ भाजपा के नेता या तो सीधे तौर पर कर रहे हैं या उनकी आड़ लेकर. गाय की सेवा करना ही असली मकसद होता तो भाजपा नेता की गोशाला या देश की सबसे बड़ी गोशाला राजस्थान में सैकड़ों गायें चारा, पानी और दवाई के अभाव में दम नहीं तोड़ देतीं.

सरकार को भले गाय के नाम पर सियासी फायदा होता दिख रहा हो, मगर जिस तरह से देश में डर और असुरक्षा का वातावरण फैल रहा है वह कम चिंता का सबब नहीं है. सरकार को इसे भी देखने-समझने और परखने की जरूरत है. सिर्फ गाय का राजनीतिक इस्तेमाल करने और महज दिखावे के लिए गो रक्षा मंत्रालय और गौ मंत्री बना देने से गायों की हालत नहीं सुधरने वाली, इसके लिए जमीनी स्तर पर काम करना ज्यादा मुफीद होगा.

संपादकीय


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