पुरोहित को जमानत

Last Updated 22 Aug 2017 12:51:22 AM IST

मालेगांव विस्फोट के बहुचर्चित मामले में आरोपित ले. कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को सर्वोच्च न्यायालय से जमानत मिलना बड़ी घटना है.


पुरोहित को जमानत

इसलिए कि वह नौ वर्षो से जमानत के लिए संघर्ष कर रहे थे लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी. उन्हें महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते ने कथित हिंदू आतंकवाद का मुख्य सूत्रधार साबित करने की कोशिश की थी.

हालांकि जमानत मिलना निर्दोष साबित होना नहीं होता, किंतु पुरोहित की जमानत पर बॉम्बे उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में जो बहस हुई, राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जो दलीलें दीं तथा अदालतों ने जो टिप्पणियां की हैं, उनसे तत्काल लगता है जैसे आरोपितों पर अभी तक कायदे से मामला नहीं चला है.

29 सितम्बर, 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में मस्जिद के निकट एक मोटरसाइकिल में बम धमाका हुआ था. घटना में 7 लोगों की मौत और करीब 100 लोग जख्मी हुए थे. मामले में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित सहित 12 लोग गिरफ्तार किए गए. साध्वी प्रज्ञा और उनके छह सहयोगियों को बीते अप्रैल में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जमानत दे दी थी.

यह कहते हुए कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया कोई मामला नहीं बनता. यह भी कहा कि साध्वी प्रज्ञा महिला हैं, और 8 साल से ज्यादा समय से जेल में हैं. इससे पहले विशेष मकोका न्यायालय ने कहा था कि एटीएस ने साध्वी प्रज्ञा, पुरोहित और नौ अन्य लोगों पर गलत तरीके से मकोका लगाया है.

एक ओर न्यायालय ने यह कहा, लेकिन दूसरी ओर पुरोहित की जमानत याचिका खारिज कर दी. सो, पुरोहित द्वारा शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाना स्वाभाविक था. एनआईए का कहना था कि प्रज्ञा ठाकुर और पुरोहित का मामला अलग है, इसलिए जमानत न दी जाए. किंतु अदालत ने एनआईए की दलील तथा बॉम्बे उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया.

यह तर्क भी गले नहीं उतरता कि साध्वी प्रज्ञा निर्दोष हैं, तो उनको आरडीएक्स आदि देने के आरोपित पुरोहित दोषी कैसे हो गए? हालांकि अभी फैसला बाकी है. किंतु यूपीए सरकार के बाद से मामले में जिस तरह गवाह पलटे हैं, उनने दबाव में बयान देने की बातें कही हैं, उनसे मुकदमा कमजोर तो हो ही गया है.

पुरोहित सहित सारे आरोपित बरी हो जाते हैं, तो भाजपा और संघ परिवार का यह आरोप साबित हो जाएगा कि पूर्व सरकार ने उनको बदनाम करने के लिए ही हिंदू आतंकवाद शब्द गढ़ा और षड्यंत्र करके मुकदमे बनाए. तो अंतिम फैसले की प्रतीक्षा करिए.



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