उम्मीदों का बिल

Last Updated 29 Mar 2017 04:49:23 AM IST

मानसिक रोगियों के लिए सरकार के कदम ने नई उम्मीदें जगाई है.


उम्मीदों का बिल

मानसिक रोगियों की देखभाल और उन्हें सही इलाज की सुविधा प्राप्त कराने के लिए लोक सभा में सोमवार को मेंटल हेल्थकेयर बिल-2016 पास हो गया. सरकार के इस पहल का स्वागत किया जाना चाहिए.

यह बिल राज्य सभा में बीते साल ही पास हो गया था. यह बिल सुनिश्चित करता है कि हर एक व्यक्ति को संचालित मानसिक स्वास्थ्य सेवा, देखभाल और उपचार का अधिकार मिले. बिल की सबसे खास बात यह है कि किसी मानसिक रोगी के आत्महत्या के प्रयास को अपराध नहीं माना जाएगा. आमतौर पर आत्महत्या करना या प्रयास करना अपराध माना जाता है.

महिला और बच्चों के लिए भी बिल में खास प्रावधान है. बिल के अनुसार, मानसिक रोग से पीड़ित बच्चे को उसकी मां से तब तक अलग नहीं किया जाएगा, जब तक बहुत जरूरी ना हो. साथ ही संपत्ति में भी अधिकार मिल सकेगा. यह ठीक है कि सरकार का यह कदम बेहद प्रगतिशील है. मगर उसे सामाजिक स्तर और प्रशासनिक मोच्रे पर कई तरह के काम करके दिखाने होंगे.

मसलन; एक आंकड़े के अनुसार, देश में कुल 6-7 फीसद लोगों को किसी-न-किसी तरह की दिमागी समस्या है, जबकि 1-2 फीसद रोगियों को गंभीर समस्या है. वहीं मानसिक रोगियों के लिए अभी महज 4500 विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, जबकि ऐसे प्रति एक लाख रोगियों के लिए 12,500 विशेषज्ञ डॉक्टर और 3000 नसरे की जरूरत है. सरकार के पास पर्याप्त फंड भी नहीं है.

ऐसे में समाज के स्तर पर यह काफी अहम हो जाता है कि लोगों में या व्यक्ति विशेष में निराशा व्याप्त न हो या वह इस कदर जिंदगी से परेशान हो जाए कि आत्महत्या करने जैसा कठोर कदम उठाने तक के बारे में सोचने लगे.

लिहाजा, कानून बनाने से ज्यादा प्रासंगिक और समीचीन उपाय यही होगा कि जनता खुशहाल जीवन जिए. लोगों में किसी भी मसले पर चिंता घर न करे. जीवन अनमोल है, इस संदेश को जब तक आम जन में प्रचारित और प्रसारित नहीं किया जाएगा, तब तक ऐसे कानून भी कागजों में सिमटकर रह जाएंगे. सरकार प्रशंसा की पात्र है, जो उसने 1987 से बने कानून को नया जामा पहनाया है. यह हर तरफ से बेहतर पग है. साफ है कि मरीज को सुरक्षा और अधिकार देने की सरकार की यह पहल मील का पत्थर साबित होगी.



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