विवेक सम्मत फैसला

Last Updated 29 Mar 2017 04:54:29 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की जनहित या लोक कल्याणकारी योजनाओं से लाभान्वित होने वाले अभ्यार्थियों के लिए आधार कार्ड की अनिवार्यता को नामंजूर करके विवेक सम्मत फैसला सुनाया है.


विवेक सम्मत फैसला

इसका स्वागत किया जाना चाहिए.

हालांकि शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि सरकार और उसकी एजेंसियों को आयकर रिटर्न भरने और बैंक खाता खुलवाने जैसे गैर-लाभ की योजनाओं के लिए आधार कार्ड मांगने से रोका नहीं जा सकता. दरअसल, अनेक राज्य ऐसे हैं जहां की अधिकांश आबादी के पास आधार कार्ड नहीं हैं. भारतीय समाज में करोड़ों घुमंतू मजदूर आबादी है, जिनका निश्चित पता-ठिकाना नहीं है.

निम्न और मध्य आय के ऐसे करोड़ों नागरिक हैं, जो शहरों और कस्बों में भाड़े के मकानों में रहकर अपना जीवन-यापन करते हैं. इनके मकान मालिक उन्हें आधार कार्ड बनवाने के लिए अनिवार्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराते हैं. ऐसे में उनका आधार कार्ड नहीं बन पाता.

सुप्रीम कोर्ट ने इन तथ्यों पर जरूर गौर किया होगा. अलबत्ता, देश की बड़ी आबादी को सिर्फ आधार कार्ड की अनिवार्यता के कारण सरकार की जनहित योजनाओं से वंचित किया जाना न्याय संगत नहीं होगा. सरकार और उसकी एजेंसियों के पास यह  आंकड़ा जरूर होगा कि देश में कितने ऐसे लोग हैं, जिनके पास अपना आवास नहीं है.

तो सबसे पहले सरकार उन आवासहीनों को आवास सुनिश्चित कराएं. इसके बिना सरकार की आधार योजना पूरी तरह सफल नहीं हो सकती. दरअसल, भारत सरकार भारतीय नागरिकों को बारह अंकों वाला विशिष्ट पहचान पत्र जारी करती है. यह विशिष्ट पहचान पत्र डेमोग्राफिक और बायोमीट्रिक के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति की पहचान सिद्ध करता है अर्थात आधार कार्ड में व्यक्ति विशेष से संबंधित सभी जानकारियां होती हैं, जिसको लेकर शुरू से यह विवादास्पद रहा है.

कुछ नागरिक संगठनों ने आधार कार्ड को संविधान द्वारा प्रदत्त निजता के अधिकार का हनन मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं भी दाखिल की हैं जिनका फैसला आना अभी बाकी है. इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता कि आधार में उपलब्ध जानकारियां और पहचान का दुरुपयोग नहीं हो सकता? उम्मीद की जानी चाहिए की शीर्ष अदालत इस गंभीर मसले पर अपना दिशा-निर्देश अवश्य जारी करेगी.



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