उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र
उत्तराखंड में नेता-चयन निरपवाद है. तीन-चौथाई बहुमत पाई भाजपा ने यहां त्रिवेन्द्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया है.
उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र |
प्रदेश के नौंवे मुख्यमंत्री बने रावत अपने उपनाम से कांग्रेस के हरीश रावत का ख्याल कराते हैं. बहुतों को यह रावत-राज का एक्सटेंशन टू लग सकता है. पर ऐसा है नहीं. भाजपा की तरह बहुतों को भरोसा है कि उत्तराखंड त्रिवेन्द्र रावत के राज में उत्तराखंड तेजी से बदलेगा. इसलिए कि हरीश रावत की तुलना में त्रिवेन्द्र एक बेलाग और तेजी से गुणात्मक बदलाव के फैसले लेने वाले नेता हैं. हालांकि, वह अपने पूर्ववर्ती की तरह अतिआत्मविश्वासी और सहज-पहुंच वाले नेता नहीं हैं. इसके बजाय वह ‘लो-प्रोफाइल’ रहते हुए काम करने में उस्ताद माने जाते हैं.
फिर अजेय बहुमत के चलते उनकी स्थिति हरीश जैसी डांवाडोल या विद्रोहियों की साजिशों की आशंका से भी मुक्त है. यह ठीक है कि उत्तराखंड में भाजपा की असाधारण विजय में कांग्रेस के दिग्गज विद्रोहियों की लोकप्रियता व मजबूत जनाधार का बहुत योगदान रहा है. इसी वजह से नौ सदस्यीय मंत्रिमंडल, जिनमें सात कैबिनेट और दो राज्य स्तर के मंत्री हैं, में कांग्रेस के पांच ‘त्यागियों’ को भी स्थान दिया गया है.
खुद भाजपा में इसको लेकर नाराजगी है और कांग्रेस भी ‘आशंकित’ है. लेकिन अजेय बहुमत वाली त्रिवेन्द्र सरकार में हरीश रावत जैसा प्रकरण दुहराने के आसार नहीं हैं. इसकी एक और वजह है-उत्तराखंड की जीत मोदी नाम का हाईप्रोफाइल सिमेंटिंग फैक्टर है, जिसका कांग्रेस के पास फिलहाल अकाल है. अत: यहां उछल-कूद मुश्किल होगी. फिर मंत्री पद के बंटवारे में जाति-क्षेत्रों के समुचित प्रतिनिधित्व का संतुलन भी किसी उत्पात को रोकेगा. यहां मुख्यमंत्री समेत गढ़वाल के छह मंत्री हैं तो चार कुमाऊं से हैं.
इनमें चार ठाकुर, चार ब्राह्मण और दो दलित हैं. कोटे के मुताबिक चार और मंत्रियों की गुंजाइश है. जाति-क्षेत्र के आधार पर गठित मंत्रिमंडल पर रावत काल में ठहर गए उत्तराखंड को तरक्की के रास्ते पर ले जाने के साथ-साथ मोदी के परम लक्ष्य 2019 में सत्ता वापसी तय करने की दोहरी जिम्मेदारी है. शपथ ग्रहण में मोदी समेत भाजपा के तमाम दिग्गजों की समारोही उपस्थिति का यही मतलब है. शुभकाना है कि त्रिवेन्द्र की कमान में उत्तराखंड ‘सबका साथ’ लेकर व्यवस्थित विकास करे.
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