भाजपा की हनक
पहले ओडिशा और फिर बृहन्मुंबई नगरपालिका (बीएमसी) के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी जीत मिली है.
भाजपा की हनक |
इससे भाजपा में आत्मविास का संचार हुआ है. वह उत्साह से भर गई है. ऐसा स्वाभाविक भी है. ओडिशा में भाजपा की सीटों में उछाल सेंसेक्स की तरह आया लगता है.
यद्यपि वह उसकी भांति क्षणिक नहीं है. एक तो यह ओडिशा में नवीन पटनायक सरकार की एंटी इंकम्बेंसी वोट के रूप में है. लगातार 10 साल से बीजद सरकार की नीतियों-कार्यप्रणालियों के प्रति ओडिशियों का मोहभंग कहा जा सकता है.
इसलिए भाजपा यहां अगले विधान सभा चुनाव में अपने को काबिज होता देख रही है. ऐसा हुआ तो उसके विजय-अभियान में एक और नया राज्य जुड़ जाएगा. अगर उत्तर प्रदेश न भी मिला तो ओडिशा पाने का विचार उसे बहुत दिनों तक ऊर्जावान रखेगा. भाजपा का ऐसा सोचना गैरमुनासिब भी नहीं है. स्थानीय चुनाव बहुत हद तक विधान सभा चुनाव के संभावित परिणाम के दिग्दर्शक होते हैं. इसके बावजूद ओडिशा से ज्यादा कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं भाजपा के लिए बीएमसी के परिणाम.
स्पष्ट जीत तो नहीं मिली, लेकिन सीटों की तादाद में 175 फीसद की बढ़ोतरी के कई मतलब हैं. पहला तो यही विास कि भाजपा एक दिन शिवसेना तक को पछाड़ने की कूव्वत रखती है. इससे शिवसेना अपनी हद में रहेगी और विधान सभा से समर्थन वापसी के लिए मच रही उसकी अधीरता शांत हो जाएगी. लगभग बराबरी वाले परिणाम का संकेत भी भाजपा-शिवसेना गठबंधन के जारी रहने पक्ष में गया है.
यह भी कि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की गुंजाइश कम हुई है. लेकिन इन परिणामों को केंद्र की नीतियों या नरेन्द्र मोदी सरकार के प्रति आस्था-विास पर मुहर के रूप में देखा जाना ठीक नहीं होगा. हालांकि, भाजपा देश स्तर पर इसको भुनाने की कोशिश कर रही है. दरअसल, स्थानीय निकाय चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे बहुत सीमित मायनों में ताल्लुक रखते हैं. यहां उम्मीदवारों की उपलब्धता और वादे को निभा सकने की क्षमता के आधार पर वोट मिलते हैं. अपवाद इसके भी हैं.
पर ओडिशा और महाराष्ट्र के ये परिणाम मोदी सरकार की नीतियों से ज्यादा स्थानीय समीकरणों से ज्यादा प्रेरित हैं. बीएमसी के परिणाम बताते हैं कि वह भाजपा की अगुवाई वाली फडनवीस सरकार की नीतियों से संतुष्ट है तो ओडिशा में सरकार के विरुद्ध है. दोनों ही स्थितियों में यह परिणाम एक कर्मशील और विकास के नतीजे देने वाली सरकार के पक्ष में है. उसके लिए है.
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