संबंधों को संजीवनी देतीं सोशल साइटें

Last Updated 07 Jun 2010 12:56:00 AM IST

मुद्दा : कमलेश त्रिपाठी रोजाना के कार्यों में कम्प्यूटर के बढ़ते निजी इस्तेमाल ने कम्प्यूटर-साक्षरजनों के संपर्कों के दायरे को दोबारा आकार दिया है। इसी रूझान के चलते सोशल नेटवर्किंग की इन दिनों धूम है। जब यह नहीं था, तब भी संपर्कों को विस्तार देने के लिए कम्प्यूटर-साक्षरजन कम्प्यूटर से जुड़े यूजनेट, अरपानेट, लिस्टसर्व, बुलेटिन बोर्ड सर्विस और इलेक्ट्रॉनिक इंफॉर्मेशन एक्सचेंज सर्विस इस्तेमाल में लाते थे।


सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स ऑनलाइन समुदायों के रूप में शुरू हुई। उस समय उनके द वेल (1985), ‘दग्लोब डॉट कॉम’ (1994), जियोसिटीज (1994) और ‘ट्राइपॉड डॉट कॉम’ (1995) जैसे नाम पड़े। ये सारे सोशल साइट्स इसी धारणा के तहत काम करते थे कि लोगों को मिलाना और उनके बीच वार्ता शुरू करानी है। इसका नतीजा यह हुआ कि चैट-रूम खुल गये और वहां हम सब अपनी ‘निजी गुफ्तगू’ में व्यस्त हो गये। इसी के साथ होमपेज बनने लगे। हरकत यहीं खत्म नहीं हुई। हमने ब्लॉगिंग का चस्का पाल लिया।

सोशल नेटवर्किंग साइट्स में 1997 में एक नाम जुड़ा- सिक्सडिग्री डॉट कॉम। यह साइट संबंध बनाने की अवधारणा पर टिकी है। इसमें यूजर प्रोफाइल बनायी जा सकती है और संदेश भेजने के काम के साथ ही फ्रेंड लिस्ट बनती है। इतना ही नहीं, सिक्सडिग्री वाली साइट के जरिये उन सदस्यों का चयन आसान होता है जिनकी रूचियां आपसे मेल खाती हैं। सोशल नेटवर्किंग का यह सामाजिक असर ही है कि कॉलेज परिसरों के माहौल में दिमाग खपाने वालों की इसमें न सिर्फ दिलचस्पी बढ़ी है, बल्कि वे ‘फेसबुक’ और दूसरे इसी तरह के साइट्स को चटकारे लेकर पढ़ भी रहे हैं।

जिन भारतीय सोशल नेटवर्किंग साइट्स की इन दिनों धूम है, वे हैं- ऑरकुट, फेसबुक, हाई5, लिंक्डइन, माइस्पेस, भारतस्टूडेंट आदि। सबसे ज्यादा ‘ऑरकुट’ का जलवा है। अब तो शोधार्थियों ने इन साइट्स की पड़ताल करनी शुरू की है कि इनमें मौजूद सामग्री का समाज पर कैसा असर हो सकता है? इसी क्रम में वे उनमें दर्ज लेखों में व्यक्त समस्याओं को गहराई से समझने में जुटे हैं। इस काम के लिए ब्वॉड, प्राइवेसी, ई-लर्निंग, सोशल कैपिटल और टीनएज यूज को बारीकी से समझा जा रहा है। मेजर, मर्फी और साइमंड ई-लर्निंग का विश्लेषण कर रही हैं जबकि एलिसन, स्टेनफील्ड और लैम्पे सोशल कैपिटल जैसी पड़ताल करने वाली एजेंसी इन्हें छान रही हैं।

‘जरनल फॉर कम्प्यूटर-मेडिएटेड कम्युनिकेशन’ ने सोशल साइट्स पर केंद्रित अपने विशेष अंक में सोशल नेटवर्क साइट्स पर पर्याप्त सामग्री दी है। इसमें कहा गया है कि सोशल कम्प्यूटिंग करने वालों में एक नशा होता है। वे अपने अजीज लोगों से तुरंत कनेक्ट होकर अपना दुखड़ा सुनाते हैं और उनसे सहानुभूति की उम्मीद करते हैं। साथ ही, उन्हें सूचनाएं और सलाह चाहिए, वे नये प्रॉडक्स को जानने के लिए भी लालायित हैं, वे अपना खट्टा-मीठा अनुभव बांटने में भी संकोच नहीं करते। और अब तो सत्ता समीकरण के दौर में वे हमारे, आपसे और उन सबसे ज्यादा से ज्यादा लेने-देने की बातें करते दिखते हैं। उनमें भी कई नई सोशल साइट्स हैं।

इस हकीकत को उदाहरण देकर बताया जाना ज्यादा ठीक रहेगा। एक समय बंद हो चुकी औघोगिक इकाइयों ने जिन साइट्स के प्रति आभार व्यक्त किया, वे हैं- गेटएन्वाल्व्ड डॉट सीए, सिक्सडिग्रीज डॉट आ॓आरजी, टेकिंगआईटीग्लोबल, केयर2, आइडियलिस्ट डॉट आ॓आरजी, वाइजरअर्थ, वनवर्ल्डटीवी, फ्रीरिपब्लिक, वनक्लाइमेट, काजेज एंड नेटवर्क फॉर गुड। अपने पैरों पर खड़ी इन कंपनियों ने इन साइट्स को सम्मान देते हुए इन्हें अपनी साइट्स के हेड पर चस्पा किया है। इसका अर्थ है कि अब सोशल साइटें निजी विचारों को व्यक्त करने के साथ ही अपने सामाजिक सरोकार भी पूरे कर रही हैं।
 
 



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