सपा और बसपा की आपसी लड़ाई का भाजपा को फायदा
2024 लोकसभा चुनाव से पहले सपा और बसपा के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई है। हालांकि दोनों पार्टियों के बीच तल्खी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद ही शुरू हो गए थे, लेकिन जब से अखिलेश यादव ने रायबरेली में कांशीराम की मूर्ति का अनावरण किया है, तब से मायावती बौखला गई है।
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उत्तर प्रदेश के रायबरेली में स्वामी प्रसाद मौर्य की पत्नी शिवा मौर्या के प्रबंधन वाले महाविद्यालय, जिसका नाम मान्यवर कांशी राम महाविद्यालय है, वहां पर बीते सोमवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया था। वहां आयोजित एक सभा को संबोधित करते हुए अखिलेश ने कहा था कि दलितों की सबसे बड़ी हितेषी पार्टी सपा ही है। उन्होंने कहा था कि पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव ने अपना समर्थन देते हुए कांशीराम को इटावा से सांसद बनवाया था। समाजवादी पार्टी से अलग होकर जो दलित दूर गया था, अब वह वापस आ गया है।
अखिलेश के इस बयान के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती बौखला गई हैं। उन्होंने अखिलेश यादव को ढोंगी बता दिया है और कह दिया है कि अखिलेश यादव कांशीराम को सम्मान देने का नाटक कर रहे हैं। दलित कभी भी समाजवादी पार्टी के साथ नहीं था।
उत्तर प्रदेश का दलित हमेशा बसपा के साथ रहा है और आगे भी रहेगा। उधर भारतीय जनता पार्टी इन दोनों पार्टियों की जुबानी जंग पर बारीकी से नजर रखे हुए है, बल्कि भाजपा की कोशिश है कि 2024 लोकसभा चुनाव से पहले तक यह दोनों पार्टियां इसी तरह एक दूसरे पर आरोप लगाती रहें। भाजपा को अच्छी तरह पता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव हो या उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव, सब में पार्टी को दलितों और पिछड़ों का बहुत समर्थन मिला था, लिहाजा भारतीय जनता पार्टी शांति से उन दोनों पार्टियों की लड़ाई को देख रही है। उधर सपा और बसपा एक दूसरे पर आरोप लगाने से पीछे हटने वाली नहीं हैं। ऐसे में संभावना व्यक्त की जा रही है कि सपा और बसपा की आपसी लड़ाई से नाराज उनके कोर वोटर एक बार फिर से भाजपा में आ सकते हैं।
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