जगत के राम, अयोध्या के रामलला

Last Updated 03 Aug 2020 12:56:23 AM IST

हरे रंग के कपड़े पर रेशमी बॉर्डर टांकते ‘बाबू लाल टेलर्स’ के मास्टर भगवत प्रसाद के हाथ मेरे सवाल पर रुक जाते हैं।


जगत के राम, अयोध्या के रामलला

कहते हैं, देखिए मैं रामलला के वस्त्र बना रहा हूं। रामलला और उनके भाई हमेशा एक जैसे, एकरंग के वस्त्र पहनते रहे हैं। नींव पूजन में भी ऐसा ही पहनेंगे। उन वस्त्रों की खूबसूरती देखने लायक है। पांच अगस्त को भूमि पूजन के दिन बुधवार होने के कारण रामलला के लिए हरे रंग का वस्त्र तैयार करवाया गया है जिसे और सुंदर बनाने के लिए उसमे केसरिया रंग का और जरी का बॉर्डर लगाया गया है। 27 साल तक रामलला के टेंट में रहते हुए साल में उनके लिए कपड़ों के दो सेट ( सात दिन के संग के कपड़ों के), बिछौना, परदे सिले जाते थे और अगर वस्त्र फट जाएं तो सिलवाने के लिए कमिश्नर से अनुमति लेनी होती थी।
एक लीगल एंटिटी :  भारतीय अस्मिता  के प्रतीक, असंख्य जनमानस के हृदय में विद्यमान मर्यादा पुरु षोत्तम श्री राम के लिए ‘रामलला’ संबोधन उनके जन्मस्थान को लेकर चल रहे अदालती मुकदमे और नारों में ही लोगों ने सुना होगा। रामलला ऐसे भगवान हैं जो अपने भक्तों के माध्यम से 70 साल से अपना मुकदमा लड़ते रहे हैं। पहले कोर्ट के आदेश से दीवारों में (विवादित ढांचे) में बंद रहे, उसके बाद टेंट में रहे, और अब मुकदमा जीतकर अपने अस्थाई मंदिर में प्रतिष्ठित हैं।

70 साल पहले चर्चा में आए : रामलला करीब सत्तर साल पहले चर्चा में आए जब 22-23 दिसम्बर 1949 की मध्य रात्रि में मस्जिद के भीतरी हिस्से में रामलला की प्रतिमा प्रकट होने की बात फैल गयी। इस प्रतिमा में राम अपने  बाल रूप में थे जो बाहर चबूतरे पर पहले से रखी थी। इन रामलला के लिए वहां पास ही स्थित सीता रसोई या कौशल्या रसोई से प्रसाद भी बनता था। राम चबूतरा और सीता रसोई निर्मोही अखाड़े के नियंत्रण में थे और उस अखाड़े के साधु वहां पूजा करते थे। 23 दिसम्बर को ही मामला दर्ज हो गया और रामलला चर्चा में आ गए।
मुकदमे में इसी नाम से हुई शिरकत : 29 दिसम्बर 1949 को मस्जिद में ताला लगा दिया गया और प्रियदत्त राम को रिसीवर नियुक्त कर दिया गया। रामलला कानूनी लड़ाई में स्थान पा चुके थे। रामलला की बाल्यावस्था (माइनर) होने के कारण रामलला के संरक्षक और सखा के रूप में अदालत में दावे पेश होते रहे। लगभग 18 साल तक मुकदमा चलने के बाद सबसे पहले 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इसे रामलला का जन्मस्थान माना और 2. 77 एकड़ जमीन का बंटवारा किया। उसके बाद 9 नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सम्पूर्ण भूमि का स्वामित्व रामलला विराजमान को दे दिया।

शिल्पी सेन/सहारा न्यूज ब्यूरो
अयोध्या


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