लखनऊ के एक युवक ने हौसले के दम पर जीती कोरोना से जंग
कोरोना वायरस ने दुनिया में कोहराम मचा रखा है। इससे बचने के लिए लोग घरों में कैद हैं। बीमारी का कोई इलाज न होने से लोग घबरा रहे हैं। मगर हौसला और संयम से कोविड-19 को हराया जा सकता है।
![]() (प्रतीकात्मक तस्वीर) |
हिम्मत और हौसले के शस्त्र से कोरोना की जंग जीत कर लौटे कीर्ति शर्मा (काल्पनिक नाम) गोमती नगर के रहने वाले हैं। वह लंदन में बीबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। वह 17 मार्च को लखनऊ लौटे थे।
उन्होंने बताया, "मुझे रास्ते में कुछ हल्का बुखार का अहसास हुआ। घर पहुंचते ही जुकाम और गले में खराश हो गयी थी। उन्हें इस बीमारी के लक्षणों के बारे में पहले ही पता था इसलिए घर पहुंचते ही उन्होंने अपने परिजनों को सर्तक करके मास्क पहन कर एक कमरे में क्वारंटाइन कर लिया। इसके बाद 18 मार्च को जांच के लिए केजीएमयू पहुंचा। यहां डॉक्टरों से जांच के दौरान पता चला कि मैं कोरोना पॉजिटिव हूं। ऐसे में मैं घबरा गया। लेकिन डॉक्टरों ने मुझे हिम्मत दी। मेरा हौसला बढ़ाया। डॉक्टरों ने कहा कि इस वायरस से घबराने की जरूरत नहीं। यह ठीक हो सकता है, पर यह समय ज्यादा लेता है। फिर मुझे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती कराया गया जहां पर दवा और खानपान में सतर्कता के चलते मैंने कोरोना से जंग जीत ली।"
उन्होंने बताया, "लंदन से भारत आने के एक दिन पहले मैं वहां खरीदारी करने गया था। वहां पर भीड़-भाड़ होने के कारण मैं इसकी चपेट में आ गया था। हालांकि मेरे जानने वालों में यह किसी को नहीं था। पता नहीं मैं इसकी चपेट में कैसे आ गया।"
कीर्ति शर्मा ने कहा, "मैं जिस वार्ड में भर्ती था। वह कमरा बिल्कुल पूरी तरह से सील था। खिड़की न होने के कारण वहां प्राकृतिक हवा भी नहीं मिलती थी। न कोई अन्य साधन थे। संक्रमण के कारण बाहर भी नहीं निकल सकते थे। ऐसे में अपने अंदर की मजबूती बहुत जरूरी होती है। इस दौरान कई बार नकारात्मक विचार भी आते हैं। इन सब के बीच धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। इलाज के दौरान जो दवाएं मिली थीं। कभी-कभी वह शरीर के अनुकूल नहीं होती हैं इसके कारण उल्टी, चक्कर और पेट दर्द हुआ था, लेकिन धीरे-धीरे फायदा देने लगीं। लेकिन सबका तोड़ सिर्फ हिम्मत और हौसला ही है। इस दौरान पौष्टिक आहार भी बहुत जरूरी है। जो वायरस से लड़ता है। हां इस दौरान डॉक्टरों ने बहुत मदद की है। उन लोगों ने मुझे और मेरे पूरे परिवार को उम्मीद बंधा रखी थी। वह हमारे लिए 24 घण्टे उपलब्ध रहते थे। इस दौरान मैं अपने परिवार के किसी भी सदस्य से नहीं मिला हूं।"
कीर्ति ने बताया कि इस संक्रमण को हल्के में लेने की जरूरत नहीं है। इसके लक्षणों के बारे में जानकारी होनी जरूरी है। अगर यह लक्षण हमें पता हैं तो हमारी जान के साथ ही परिवार की जान भी बच जाएगी।
कीर्ति शर्मा ने बताया कि 21 दिन में मोबाइल ही हमारा साथी रहा है। इस दौरान ऑनलाइन मूवी और घर वालों से बातचीत होती रहती थी। वह लोग मेरा हौसला बढ़ाते रहते थे। 22वें दिन में जब मैंने ताजी हवा ली है तो मुझे एक नया अहसास मिला है।
उन्होंने कहा कि ज्यादा से ज्यादा सकारात्मक चीजों का प्रसार हो। एक बात न्यूज में भी हो कि मरने वाले बाद में दिखें ठीक होने वाले पहले दिखें तो ज्यादा बेहतर होगा। इससे मरीजों में आशा बढ़ेगी।
कीर्ति के मुताबिक इंग्लैण्ड में कोरोना आने के बाद भी बहुत चीजों में छूट थी, जिस कारण वहां संक्रमण बढ़ता गया। भारत इस वायरस से लड़ने के प्रति काफी गंभीर दिखा। इसी कारण यहां लॉकडाउन जैसे प्रक्रिया अपनायी गयी है। इससे ही यह नियंत्रित होगा। इसमें सबसे ज्याद जरूरी है अपने का संयमित रखना और डॉक्टरों और गाइडलाइन के अनुसार चलना। दवा का समय से सेवन करना भी अनिवार्य होता है। इसी का नतीजा है जो मैं कोरोना को मात देकर लौटा हूं।
उन्होंने बताया कि अभी वह होम क्वारंटाइन का पालन कर रहे हैं। इस दौरान वह परिजनों तक से नहीं मिल रहे हैं।
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