25 साल बाद सपा-बसपा के रिश्तों में फिर आई गरमाहट

Last Updated 05 Mar 2018 02:15:23 AM IST

उत्तरप्रदेश की दो लोकसभा सीट के उपचुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए 25 साल बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी ने हाथ मिलाया है.




सपा नेता अखिलेश यादव एवं बसपा सुप्रीमो मायावती (फाइल फोटो)

ऐसा फैसला इलाहाबाद और गोरखपुर के दोनों पार्टियों के नेताओं ने आपस में बैठक के बाद किया. इसकी जानकारी बसपा प्रमुख मायावती और सपा प्रमुख अखिलेश यादव को दी गई. उपरोक्त दोनों सीट गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों पर 11 मार्च को उपचुनाव होने हैं. 14 मार्च को परिणाम आएंगे. गोरखपुर सीट से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सांसद थे और फूलपुर से उप मुख्यमंत्री कैशवप्रसाद मौर्य. दोनों ने विधान परिषद के लिए चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था.
माया-अखिलेश ने दिखाई सूझ-बूझ : समझा जाता है दोनों नेताओं ने सूझ-बूझ का परिचय देते हुए अपने-अपने नेताओं को इसकी इजाजत दे दी. वैसे भी अखिलेश मायावती के प्रति नरम रुख अपनाते रहे हैं. विधानसभा चुनावों के दौरान भी उन्होंने मायावती पर कोई तीखा हमला नहीं किया था. ऐसा माना जा रहा है कि यह 2019 चुनावों के लिए दोनों पार्टियों की मिली जुली रणनीति का हिस्सा है. सपा के एक नेता ने कहा भी है कि इसे 2019 के लिए एक प्रयोग के तौर पर देखा जाए. दोनों तरफ से सूझ-बूझ का परिचय दिया गया कि आलाकमा की तरफ से सीधे गठबंधन का ऐलान नहीं किया गया, बल्कि स्थानीय स्तर पर ऐसा कराया गया, ताकि अगर कुछ-ऊंच नीच हो तो हाईकमान उसे संभाल सके. इसी के मद्देनजर इस ऐलान के बाद बसपा प्रमुख मायावती स्वयं मीडिया के सामने आई और कहा कि ये वोट ट्रांसफर का मामला है, इसे गठबंधन नहीं समझा जाए. यह भी सिर्फ गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा चुनाव के लिए है. इसके अलावा राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में दोनों पार्टियां एक दूसरे की मदद करेंगी. मायावती ने ऐसा इसलिए किया, क्योंकि खबर सामने आने के बाद मीडिया ने इसे बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना शुरू कर दिया था. यही नहीं कुछ चैनल इसे मोदी का डर भी बताने लगे थे.

गठबंधन होगा तो मीडिया को बताएंगे : मायावती ने पार्टी की स्थिति साफ करते हुए कहा, ‘मैं कहना चाहूंगी कि सपा-बसपा का कोई गठबंधन होगा तो गुपचुप तरीके से नहीं होगा, बल्कि खुलकर होगा. किसी पार्टी से भी गठबंधन होगा तो मीडिया को सबसे पहले बताया जाएगा. फूलपुर और गोरखपुर में जो चुनाव हैं, उनमें बसपा ने अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे हैं. इसका ये मतलब नहीं है कि हम वोट डालने नहीं जाएंगे और हम वोट डालने जरूर जाएंगे. ऐसा मैंने पार्टी के लोगों को दिशा निर्देश दिए हैं.’
इस हाथ ले, उस हाथ दे : हमारी पार्टी में अभी इतने विधायक नहीं हैं कि हम खुद से चुनकर अपना सदस्य राज्यसभा भेज दें और ना ही समाजवादी पार्टी के पास इतने सदस्य हैं कि वो अपने दो लोगों को राज्यसभा भेज सकें. इसलिए हमने तय किया है कि हम उनका एमएलसी बना देंगे और वो अपने वोट हमें ट्रांसफर कर देंगे, ताकि हम राज्यसभा में अपना सदस्य भेज सकें. इसी के साथ अगर कांग्रेस अपने सातों विधायकों के वोट हमारे उम्मीदवार को दिलाती है तो वह मध्यप्रदेश से आसानी के साथ अपना उम्मीदवार राज्यसभा भेज सकती है. वहां हमारे विधायक उसके उम्मीदवार को वोट करेंगे.
दोनों ने वक्त की नजाकत को समझा : दोनों पार्टियों ने देश के राजनीतिक परिदृश्य और पिछली पराजयों से सबक लेते हुए अब एक बार फिर साथ आने का मन बनाया है. फिलहाल भले ही यह फैसला उपचुनाव और राज्यसभा चुनावों तक ही तात्कालिक कहा जा रहा हो, लेकिन निश्चित ही यह 2019 के लिए एक रिहर्सल के तौर देखा जाएगा. यदि नतीजे बेहतर हुए तो फिर दोनों खुलकर इसका ऐलान भी कर देंगी.
25 साल बाद फिर साथ : दोनों पार्टियों ने भाजपा के खिलाफ 1993 में गठबंधन कर चुनाव लड़ा था और मिलीजुली सरकार बनाई थी. तब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने थे. आपसी खींचतान के चलते 2 जून, 1995 को बसपा ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. तब हुए गेस्ट हाऊस कांड जिसमें मायावती पर जानलेवा हमला हुआ था इसके बाद दोनों दलों में खटास इतनी बढ़ गई थी कि दोनों एक दूसरे को एक आंख नहीं सुहाते थे. लेकिन अब अखिलेश यादव की मायावती के प्रति आदर भाव और नरम रुख के चलते एक बार फिर दोनों पार्टियों ने हाथ मिलाया है.

सहारा न्यूज ब्यूरो


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment