पुरातत्व विभाग ने कहा महल है सहारनपुर जेल, करो खाली
सहारनपुर जिला कारागार को पुरातत्व विभाग ने राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है.
पुरातत्व विभाग ने कहा महल है सहारनपुर जेल, करो खाली |
पुरातत्व विभाग ने सहारनपुर जिला कारागार को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करते हुए उसे खाली करने और इमारत में किसी तरह का कोई बदलाव किये जाने पर भी रोक लगा दी है.
सहारनपुर जिला कारागार को 147 साल पहले वर्ष 1870 में अंग्रेजों ने जिला जेल के रूप में इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. पुरातत्व विभाग की जांच में यह बात सामने आई है कि रोहिला वंश के समय में यह इमारत राजा का महल हुआ करता था.
सहारनपुर कारागार के अधीक्षक वीरेश राज शर्मा ने आज यहां बताया कि कार्यवाहक अपर पुलिस महानिरीक्षक (जेल) शशि श्रीवास्तव ने इस कारागार का निरीक्षण किया. उन्होंने कहा कि इस कारागार की क्षमता 530 बंदियों की है, लेकिन उसमें 1690 बंदी रह रहे है. महिलाओं और बालकिशोर की जेल भी इसी रोहिला महल का हिस्सा है.
आयुक्त दीपक अग्रवाल ने प्रदेश के गृह विभाग को पत्र लिखकर कहा है कि सहारनपुर में अब नई जेल के निर्माण किए जाने की जरूरत है. इसके लिए शासन की ओर से जमीन की उपलब्धता सुनिश्चित कराई जाए जिससे आधुनिक सुविधाओं से संपन्न जेल का निर्माण संभव हो सकेगा.
डीआईजी जेल शशि श्रीवास्तव के मुताबिक वर्तमान कारागार में शौचालयों का अभाव है. इसमें वीडियो कांफ्रेंसिंग और पीसीओ की भी व्यवस्था के लिए भवन नहीं है.
पुरातत्व विभाग ने इस भवन को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किए जाने संबंधी शिलालेख भी लगा दिया है. सहारनपुर के इतिहास के जानकारों का कहना है कि ब्रिटिशकाल के दौरान सहारनपुर रोहिला वंश के राज्य के अधीन आता था और जो अब जिला कारागार है.
यह रोहिला वंश के दौरान राजा का महल हुआ करता था. इसे सन् 1870 से जिला जेल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. इतना पुराना भवन होने के कारण इसमें बनी कई बैरकों की दीवारें जीर्णक्षीण हालत में है और कारागार अधिकारियों के भवन का भी खस्ता हाल है. पुरातत्व विभाग की नये निर्माण या मरम्मत पर रोक के कारण जीवन का जोखिम उठाकर यहां कैदियों को रखा जा रहा है.
श्री अग्रवाल ने पूरी रिपोर्ट तैयार कर शासन को भेज दी है. शासन की ओर से इस संबंध में अभी कोई भी प्रस्ताव प्राप्त नहीं हुआ है. जेल भवन को किसी भी दृष्टि से मौजूदा हालत में सुरक्षित नहीं माना जा सकता है. सहारनपुर में नया जेल बनने में कम से कम पांच से सात वर्ष का समय लग सकता है. ऐसे हालात में पुरातत्व विभाग के निर्देशों के मुताबिक इस भवन को संरक्षित रखना बेहद कठिन है.
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