साइकिल पिता की या पुत्र की? आज EC के फैसले पर टिकी नजरें

Last Updated 13 Jan 2017 03:35:37 AM IST

मुलायम सिंह और उनके मुख्यमंत्री पुत्र अखिलेश में चल रहे विवाद की वजह से सपा के भविष्य को लेकर लोगों की निगाहें अब चुनाव आयोग के शुक्रवार को आने वाले फैसले पर टिक गई हैं.


चुनाव चिन्ह को लेकर सपा में मचा घमासान जारी

मुलायम सिंह अपने भाई शिवपाल सिंह के साथ बुधवार से ही दिल्ली में हैं. अखिलेश खेमे की ओर से राम गोपाल आयोग में पेश होते रहे हैं. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने राम गोपाल यादव पर भाजपा से मिलकर सपा को तोड़ने का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि अपने पुत्र और बहू को सीबीआई से बचाने के लिए राम गोपाल यादव भाजपा से मिलकर सपा को तोड़ रहे हैं.

दोनों पक्षों को आज 12 बजे बुलाया : चुनाव आयोग ने सुनवाई के लिए शुक्रवार को 12 बजे दोनो पक्षों को बुलाया है. आयोग सपा के चुनाव चिह्न साइकिल पर फैसला सुना सकता है. पार्टी के दोनों खेमों के एक होने की संभावना क्षीण हो गई है, हालांकि मुलायम सिंह यादव ने बुधवार को ही कहा था कि वह पार्टी को किसी हालत में टूटने नहीं देंगे. दिलचस्प बात यह है कि पार्टी ने पांच नवम्बर को ही अपना रजत जयन्ती समारोह मनाया था. उसके कुछ ही दिन बाद पार्टी में विवाद इस कदर बढ़ा कि अब उसका सिर्फ औपचारिक रूप से टूटना शेष है.

दो धड़ों में बंटी पार्टी : पार्टी दो धड़ों में बंट गयी है. एक धड़े का नेतृत्व मुलायम सिंह कर रहे हैं और उनके साथ वरिष्ठ नेता शिवपाल और राज्यसभा सांसद अमर सिंह हैं. दूसरे धड़े का नेतृत्व राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश के हाथ में हैं. उनके साथ राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव, नरेश अग्रवाल और नीरज शेखर तथा किरणमय नंदा जैसे वरिष्ठ नेता हैं.

चुनाव चिह्न पर दावे के अपने अपने तर्क : मुलायम धड़े का दावा है कि पार्टी की स्थापना मुलायम सिंह यादव ने की है. चुनाव चिह्न साइकिल पर उनके हस्ताक्षर हैं, इसलिए ये उन्हें मिलना चाहिए. अखिलेश धड़े का दावा है कि पार्टी के 90 प्रतिशत सांसद, विधायक और पदाधिकारी उनके साथ हैं, इसलिए चुनाव चिह्न और पार्टी के नाम पर उनका हक है.

17 से पहले लेना होगा आयोग को फैसला : चुनाव आयोग को 17 जनवरी से पहले सपा के नाम और चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ के बारे में कोई फैसला लेना होगा क्योंकि उत्तर प्रदेश विधानसभा के पहले चरण के चुनाव के लिए 17 जनवरी को ही अधिसूचना जारी होनी है. जानकारों का कहना है कि चुनाव आयोग पार्टी का नाम और चुनाव चिह्न जब्त कर सकता है. आमतौर पर ऐसे मामले को निपटाने में छह महीने का समय लग जाता है.

समयलाइव डेस्क ब्यूरो


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