मायावती के कर्नाटक दौरे से इस तरह होगा कांग्रेस का नुकसान!
किसी का बढ़िया और मजबूत घर टूट रहा हो और वह व्यक्ति कोई दुसरा घर बनवाने की बात करे तो हंसी आती है। उसकी सोच पर तरस आता है। उसकी ऐसी पहल पर लोग सवाल उठाते हैं। यहां बात किसी कहानी या किसी काल्पनिक चरित्र की नहीं हो रही है, बल्कि एक ऐसे नेता की हो रही है, जिसकी उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक धमक है। जी हाँ इनका नाम है मायावती। विश्वविख्यात नेत्री हैं।
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उत्तर प्रदेश में इन्हे दलितों का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। इस समय उत्तर प्रदेश में नगर निकाय के चुनाव चल रहे हैं। सभी पार्टी के नेता घूम-घूमकर प्रचार प्रसार कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ योगी खुद भी एक-एक दिन चार-चार चुनावी रैलियां कर रहे हैं। वहीं मायावती उत्तर प्रदेश को छोड़ कर्नाटक में रैलयां कर रही हैं। जबकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि वहां से अब कुछ फायदा होने वाला नहीं है।
ऐसे में उत्तर प्रदेश और उनकी पार्टी के लोग ही सवाल उठा रहे हैं कि मायावती अपना बना बनाया राजनैतिक घर उत्तर प्रदेश को छोड़ कर कर्नाटक में इतना ध्यान क्यों दे रही हैं। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव शुरू होने के पहले बसपा सुप्रीमों मायावती ने जोर देकर कहा था कि इस बार उनकी पार्टी मजबूती के साथ नगर निकाय का चुनाव लड़ेगी। उनके ब्यान के बाद उनकी पार्टी के पदाधिकारी और कार्यकर्ता उस समय खूब उत्साहित हुए थे। सैकड़ों हजारों लोगों ने चुनाव की तैयारियां शुरू कर दीं थीं। शुरू- शुरू में ऐसा लग रहा था कि इस बार बसपा नगर निकाय चुनाव में अन्य पार्टियों के सामने कड़ी चुनौती पेश करेगी, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह उस समय ठंडा हो गया, जब मायावती ने नगर निकाय चुनाव में मेयर प्रत्यासी के रूप में 11 मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर दी।
मेयर का चुनाव लड़ने का मन बनाकर बैठे सैकड़ों भावी प्रत्याशियों को निराशा हुई। रही सही कसर तब निकल गई, जब मायावती, चुनाव प्रचार करने के लिए कहीं नहीं गईं। जबकि पहले फेज का चुनाव हो गया। दूसरे फेज के चुनाव में महज पांच दिन बाकी हैं। बसपा के पदाधिकारी और कार्यकर्त्ता इस बात से बेफिक्र अपने चुनाव की तैयारियों में लग गए। अपने जीत के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। उन्होंने यह सोचना बंद कर दिया था कि उनकी नेता प्रचार क्यों नहीं कर रही हैं। चुनावी रैलियां क्यों नहीं कर रही हैं। लेकिन मायवाती के कर्नाटक दौरे से बसपाई जरूर निराश हुए होंगे।
मायावती उत्तर प्रदेश का चुनाव छोड़ इस समय कर्नाटक में रैली कर रही हैं। जबकि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी का एक उम्मीदवार वहां से विजयी हुआ था। कर्नाटक की आरक्षित कोल्लेगम विधानसभा सीट से बसपा के प्रत्यासी महेश को जीत मिली थी। महेश ने कांग्रेस के ए आर कृष्णमूर्ति को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। एक समय उत्तर प्रदेश का दलित वोटर मायावती के साथ हुआ करता था। पिछले कुछ चुनावों से दलित वोटर बसपा से दूर होता दिखाई दे रहा है। यानी मायावती का कोर दलित वोटर, अब उत्तर प्रदेश में ही उनसे दूर जा रहा है, ऐसे में उन्हें कर्नाटक से क्या मिलने वाला है।
उत्तर प्रदेश में वैसे भी उन्होंने मेयर पद पर 11 मुस्लिम उम्मीदवार खड़ा करके भाजपा का काम आसान कर दिया है। उन्हीने सपा की गणित बिगाड़ दी है। उत्तर प्रदेश में यही चर्चा हो रही है कि उन्होंने अंदरखाने भाजपा से हाथ मिला लिया है या फिर वो भाजपा से डर गई हैं। ऐसे में उनका कर्नाटक जाना कहीं न कहीं उनकी उत्तर प्रदेश जैसी चाल समझी जा रही है। यानी मायावती की वजह से वहां जो वोटें उनकी पार्टी को मिलती हैं तो उसका सीधा-सीधा फायदा भाजपा का ही होगा। विपक्षी पार्टियां भी यही आरोप लगा रही हैं कि मायावती कर्नाटक में अपने उम्मीदवार को जिताने नहीं बल्कि भाजपा को फायदा पहुंचाने गईं हैं।
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