कर्नाटक में लिंगायत समाज की नाराजगी को कैसे दूर करेगी BJP?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां सरकार बनाने का दावा कर रही हैं। पिछले विधानसभा चुनाव के बाद कर्नाटक की राजनीति में बहुत परिवर्तन हो चुका है। पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन सरकार कांग्रेस और जेडीएस की बन गई थी। दोनों पार्टियों के आपसी विवाद के कारण सरकार गिर गई थी, और भाजपा पुनः सत्ता पर काबिज हो गई थी।
![]() लिंगायत समुदाय के नेता बीएस येदुरप्पा और जगदीश शेट्टार |
कांग्रेस के दावे कितने सच साबित होंगे, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन कभी कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के नेता रहे, जगदीश शेट्टार ने पार्टी से इस्तीफा देकर जब से कांग्रेस ज्वाइन की है, भाजपा के दावों पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। जगदीश शेट्टार 6 बार विधायक रह चुके हैं। 2012 से लेकर 2013 तक वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे। 2008 से लेकर 2009 तक वह विधानसभा के अध्यक्ष रहे। शेट्टार लिंगायत समुदाय से आते हैं। लिंगायत समुदाय के ताल्लुक रखने वाले बीएस येदयुरप्पा और शेट्टार दोनों मिलकर लिंगायत समुदाय के अधिकांश वोटरों को भाजपा के पाले में करने में अहम भूमिका निभाते थे।
लिंगायत समुदाय कर्नाटक में कितना मजबूत है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1956 से लेकर अब तक लिंगायत समुदाय से 8 लोग कर्नाटक के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 224 विधानसभा वाली सीट में से 116 सीटें ऐसी हैं, जहां लिंगायत समुदाय के वोटर निर्णायक की भूमिका में हैं। ऐसे में जगदीश शेट्टार का कांग्रेस में शामिल होना भाजपा को नुकसान पहुंचा सकता है। दरअसल जगदीश शेट्टार ने भाजपा से नाराज होकर पार्टी छोड़ने का फैसला किया। उन्हें उम्मीद थी कि इस बार भी उन्हें टिकट दिया जाएगा, लेकिन पार्टी ने उन्हें ना तो टिकट दिया और ना ही उनसे बात करने की कोशिश की। यह सारी बातें जगदीश शेट्टार ने उस समय बताईं जिस समय उन्होंने कांग्रेस पार्टी ज्वाइन की।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने जगदीश शेट्टार को कांग्रेस का पटका पहनाकर उन्हें पार्टी ज्वाइन कराई। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में ओबीसी समुदाय की अधिकांश वोटें भाजपा को मिली थीं। एससी और एसटी के सबसे अधिक वोट भी भाजपा को ही मिले थे। इस वर्ग की वोटें पाने में दूसरे नंबर पर कांग्रेस थी। जबकि जेडीएस को इन वर्गों का सबसे कम वोट मिला था। संभव है कि मुसलमानों ने कांग्रेस को ज्यादा वोट दिया हो, लेकिन बहुत हद तक भाजपा को ज्यादा सीटें दिलाने में लिंगायत समुदाय के नेता बीएस येदुरप्पा और जगदीश सेंटर का बहुत बड़ा हाथ था। अब जगदीश शेट्टार पार्टी छोड़ चुके हैं। कांग्रेस का दामन थाम लिया है, ऐसे में कांग्रेस अब मजबूत होती हुई दिख रही है। लेकिन अभी चुनाव में वक्त है।
चुनाव आते-आते बहुत से वोटरों का मन बदल भी जाता है। ऐसे में भाजपा पूरी कोशिश करेगी कि लिंगायत समुदाय के किसी अन्य नेता को आगे बढ़ाया जाए ताकि जगदीश शेट्टार के जाने के बाद जो डैमेज हुआ है,उसे कंट्रोल किया जा सके। लेकिन इस बार इतना तो तय है कि कर्नाटक का चुनाव दोनों पार्टियों के लिए आसान नहीं होने वाला है। कर्नाटक के चुनाव में एक तरह से दोनों पार्टियों का परीक्षण भी होने वाला है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा का परीक्षण होगा। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन्हें मिले अपर समर्थन की जमीनी हकीकत का पता चलेगा तो दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी की छवि का भी परीक्षण होगा। भाजपा की सबका साथ,सबका विकास और सबका विश्वास वाले स्लोगन को कर्नाटक की जनता कितनी सार्थक करती है,इसका भी पता चलेगा।
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