पहले बसाने का इंतजाम करो, फिर हटाओ : दिल्ली हाईकोर्ट
झुग्गीवासियों को बड़ी राहत देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि प्रशासन उनके हटाये जाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था करे। उन्हें बिना सूचना जबरन हटाया जाना कानून के खिलाफ है।
दिल्ली हाईकोर्ट |
न्यायमूर्ति एस. मुरलीघर व न्यायमूर्ति विभू बाखरू की पीठ ने यह फैसला रेलवे की जमीन पर शकूरबस्ती में बसे झुग्गी के मामले में दिया है।
कोर्ट का यह फैसला जनवरी, 2006 से पहले बसे झुग्गीबस्ती पर लागू होगा। इन बस्ती में जो 14 फरवरी, 2015 से पहले झुग्गी बना लिया है उन्हें बगैर पुनर्वास के नहीं हटाया जा सकता। पीठ ने कहा है कि किसी भी झुग्गी बस्ती को हटाये जाने से पहले प्रशासन विस्तृत सव्रे करेगा और झुग्गीवालों के साथ मिलकर पुर्नवास की योजना बनाएगा जिससे हटाये जाने की स्थिति में उन्हें पुनर्वास किया जा सके। पीठ ने कहा कि आवास का अधिकार सिर्फ सर के उपर छत होने से नहीं है। इसके तहत जिविका का अधिकार, स्वास्थ्य का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, पेयजल का अधिकार, सीवेज व परिवहन का अधिकार भी समाहित है। कोर्ट ने अपने 104 पृष्ठों के फैसले में कहा है कि झुग्गी-झोपड़ी संबंधी वर्ष 2015 का नीति सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के फैसले पर आधारित है। यह राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी झुग्गी वस्तियों पर लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को व्यापक तौर पर लिया है और झुग्गीवासियों को अतिक्रमणकारी नहीं माना है। आवास के अधिकार का मतलब है कि उसमें रहनेवाला स्वतंत्रतापूर्वक शहर में रह सके।
कोर्ट ने यह फैसला कांग्रेस नेता अजय माकन व दो झुग्गिवासियों की याचिका पर सुनवाई करते हुये दिया है। याचिकाकर्ताओं ने वर्ष 2015 में याचिका दाखिल कर रेलवे व दिल्ली पुलिस को शकूरबस्ती की झुग्गी हटाने से रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि इलाके में पांच हजार झुग्गीबस्ती है और उन्हें बिना पुनर्वास के हटा दिया जाय तो उनलोगों को जाड़े में बिना छत के नीचे रहने को मजबूर होना पड़ेगा। इसलिए रेलवे व पुलिस की कार्रवाई पर रोक लगाया जाए।
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