दलित महिलाओं ने काशी के पंडितों को बांधी राखी
दलित समाज की महिलाओं ने काशी के तीस पंडितों और संस्कृत के विद्यार्थियों को आज राखी बांधकर सामाजिक समरसता का नया संदेश दिय़ा.
फाइल फोटो |
जाने-माने समाज सुधारक और सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक की पहल पर राजस्थान के अलवर और टोंक से आई सैकड़ों महिलाओं और वृंदावन से आई विधवाओं ने रक्षाबंधन के पवित्र त्योहार के मौके पर ब्रामणों और संस्कृत के विद्यार्थियों को अपनी राखियों से सजा दिया.
हिन्दू समाज में ब्राहृमण और दूसरे उच्च वर्ग के लोग दलितों से बचते रहे हैं. हालांकि हालत अब काफी बदल गये हैं इसके बावजूद छुआछूत की परंपरा अब भी कुछ स्थानों पर जारी है. उच्च वर्ग के हाथों में राखियां बांधने के बाद सदियों से छुआछूत की शिकार रही ‘राजस्थान’ की राजकुमारियों के चेहरे पर चमक देखते ही बन रही थी.
राखी बांधने वाली करीब डेढ़ सौ महिलाएं पहले हाथ से मैला ढोने का काम करती थीं. लेकिन सुलभ की पहल पर अब न सिर्फ उन्हें इस कुप्रथा से मुक्ति मिल गई है, बल्कि वे सिलाई-कढ़ाई और दूसरे कामों के जरिए अपनी जीविका चला रही हैं. राखी बांधने वाली महिलाओं में करीब एक सौ वृंदावन से आई विधवाएं भी शामिल थीं.
सुलभ की पहल से पहले तक ये विधवाएं वृंदावन में बदहाली की जिंदगी गुजार रही थीं. लेकिन सुलभ इंटरनेशनल के सहयोग के कारण अब इन विधवाओं को अपने गुजारे के लिए भीख नहीं मांगनी पड़ रही है. बल्कि वे आसानी से अपनी जिंदगी गुजार रही हैं.
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