हिंदुओं की हिमायत की तो पाक से निकाल फेंका
पाकिस्तान में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज बुलंद करना मानवाधिकार कार्यकर्ता जुल्फिकार शाह और उनकी पत्नी गुलाम फातिमा शाह को भारी पड़ गया.
![]() नई दिल्ली : जुल्फिकार और फातिमा प्रेस क्लब में पाक सरकार के जुल्म को बयां करते. |
दोनों अपने देश से बेदखल होकर दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं.
पाक सेना और आईएसआई ने उन पर अनगिनत जुल्म ढाए. जुल्म की इंतहा तो तब हो गई जब जुल्फिकार को स्लो पॉइजन (लेड और आर्सेनिक) देकर खामोशी से मरने के लिए छोड़ दिया गया. पाक सरकार ने जब उन्हें देश बदर कर दिया तो वे नेपाल पहुंचे. नेपाल में भी पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई ने उन पर जानलेवा हमले कराए. बचते-बचाते यह दंपत्ति अब दिल्ली पहुंचे हैं. लेकिन यहां भी दुारियां उनका पीछा नहीं छोड़ रही हैं. उन्होंने भारत सरकार से शरण मांगी है. यह अर्जी अभी विचारार्थ है.
जुल्फिकार दंपत्ति के लिए राहत की बात यह है कि संयुक्त राष्ट्र में अपील के बाद इन्हें तकरीबन एक साल से रिफ्यूजी का दर्जा मिला हुआ है. इसलिए ये अन्य किसी देश में जाने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन वे तभी तक उस देश में रह सकेंगे, जब तक का उन्हें उस देश का वीजा मिला हुआ है. स्थायी निवास के लिए जरूरी है कि उस देश की सरकार उन्हें शरणार्थी का दर्जा दे. जुल्फिकार दंपत्ति 11 फरवरी 2013 से दिल्ली में रहे हैं. यहां इनका इलाज भी चल रहा है. विभिन्न जांचों के बाद जुल्फिकार के शरीर में आर्सेनिक और लेड की ज्यादा मात्रा होने के प्रमाण मिले हैं. जांच और इलाज के लिए भी उन्हें दिल्ली के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में भटकना पड़ रहा है.
जुल्फिकार दंपत्ति को चिंता इस बात की है कि उनकी वीजा अवधि इसी माह 27 अक्टूबर को समाप्त हो रही है. उसके बाद इनके भारत में रहने की वैधता समाप्त हो जाएगी. उन्होंने गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय में 13 अगस्त 2013 को दाखिल किए गए अपने आवेदन में खुद को शरणार्थी का दर्जा देने अथवा स्थायी शरण की गुहार लगाई है. सामान्य जीवन के लिए जद्दोजहद कर रहे जुल्फिकार और उनकी पत्नी फातिमा शरण की मांग और पाक सरकार से अपनी जान बचाने की गुहार को लेकर यहां प्रेस क्लब के गेट पर बैठे हुए हैं.
पाकिस्तान के हैदराबाद के निवासी जुल्फिकार ने संयुक्त राष्ट्र को अपनी वेदना पत्रचार के माध्यम से बताई. संयुक्त राष्ट्र ने आवेदन पर सुनवाई करते हुए उन्हें रिफ्यूजी का दर्जा प्रदान किया है. जब उनसे पूछा गया कि प्रेस क्लब के बाहर धरने पर क्यों बैठे हैं ! जुल्फिकार की पत्नी फातिमा ने कहा कि भारत में लोकतंत्र है. प्रेस लोकतंत्र का चौथा खंभा है... उन्हें उम्मीद है कि यहां से भारत सरकार जरूर सुनेगी और उन्हें शरण देगी. जुल्फिकार हैदराबाद (पाकिस्तान) में अपनी मां, एक भाई और दो बहनों को छोड़कर आए हैं. उनका कहना है कि घर के लोगों को यह खुशी है कि मैं जिंदा हूं... जाहिर है जिंदा रहूंगा तभी जिंदगी की जंग को जारी रख सकूंगा.
| Tweet![]() |