बिहार में NDA और I.N.D.I.A क्यों हैं 50-50 ?

Last Updated 20 Mar 2024 06:32:57 PM IST

लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने बिहार में सीटों का बंटवारा कर दिया है।


NDA Vs INDIA in Bihar

बीजेपी ने बिहार की सभी चालीस सीटों को जीतने का दावा किया है। उधर महागठबंधन दावा कर रहा है कि इस बार बिहार से बीजेपी को उखाड़  फेकेंगे। हालांकि चुनाव जीतने का दावा सभी नेता और सभी पार्टियां करती ही रहती हैं। दावे करना अब आम बात हो गई है। बहरहाल आगामी चार जून को सबके दावे की हकीकत पूरे देश को पता चल जाएगी, कयोंकि उसी दिन मतगणना होनी है, लेकिन आज हम अपने इस रिपोर्ट के जरिए यह समझाने की कोशिश करेंगे कि इस बार बिहार में क्या होने जा रहा है।

आगे बढ़ने से पहले यहाँ बता दें कि बिहार देश का पहला ऐसा राज्य है, जहाँ पिछले पांच वर्षों में सबसे ज्यादा चौंकाने  वाले राजनैतिक घटना क्रम हुए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कभी भाजपा से तो कभी राजद वाले महागठबंधन से मिलकर सरकार चलाते रहे। उनके बार-बार इधर-उधर जाने से निश्चित तौर पर उनकी इमेज प्रभावित हुई होगी। यानि लगभग 17 महीनों तक महागठबंधन के साथ मिलकर सरकार चलाने वाले नीतीश कुमार पर बीजेपी ने भले ही भरोसा कर लिया है, लेकिन 2019 वाला करिश्मा नीतीश कुमार और उनकी पार्टी इस बार कर पायेगी, कहना मुश्किल है। उधर राजद नेता और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने पिछले 17  महीनों में अपने आपको काफी इम्प्रूव किया है। उन्होंने बिहार की जनता के सामने अपनी पार्टी राजद की एक नई तस्वीर बनाने की कोशिश की है, जिसमें वो कुछ हद तक कामयाब भी हुए हैं।

यहां तक कि जो राजद पहले MY समीकरण यानि मुस्लिम-यादव को लेकर जानी जाती थी, अब उसे तेजस्वी ने BAAP में तब्दील कर दिया है।  तेजस्वी ने अब B से बहुजन,A से अगड़ा,दूसरे A से आधी आबादी यानी महिलाओं से है। जबकि P का अर्थ पुअर यानी गरीब से है। इस बार इस फार्मूले के तहत बिहार के लगभग नब्बे प्रतिशत वोटरों तक पहुंचने की कोशिश की है। तेजस्वी को उसका लाभ मिलना तय है, कितना मिलेगा, यह निर्भर करता है उनकी चुनावी रणनीति और उनकी मेहनत पर। 2019 के लोसभा चुनाव में बीजेपी को 17 सीटों पर जीत मिली थीं, जदयू को 16, कांग्रेस की एक सीट पर जीत हुई थी, जबकि बाकी सीटों पर एनडीए  के घटक दलों ने जीत दर्ज की थी। राजद की पिछले लोकसभा चुनाव में एक भी सीट पर जीत नहीं हुई थी।

बीजेपी अगर मजबूत हुई है तो महागठबंधन भी पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार ज्यादा मजबूत हुआ है। राजद के साथ कांग्रेस के अलावा सभी वाम दल भी शामिल हैं।  इस बार पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी भी इस महागठबंधन में शामिल हो गई है। उधर राष्ट्रीय लोजपा के पशुपति पारस लगभग एनडीए से अलग हो चुके हैं। हालांकि उनका जनाधार बहुत नहीं है लेकिन वो जो भी नुकसान करेंगे, एनडीए का ही कर सकते हैं। एनडीए और महागठबंधन आमने-सामने हैं। दोनों की तैयारियां बेहतर हैं। बिहार में जातिगत समीकरणों को साधे बिना आज भी वहां की कोई भी पार्टी चुनाव नहीं लड़ती है। बिहार में जो हालात बनते दिख रहे हैं, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि इस बार कम से कम 2019 जैसा करिश्मा नहीं होने वाला है। तेजसवी यादव 17 महीने बनाम सत्रह साल का जुमला लेकर बिहार की जनता के बीच अपनी मौजूदगी लगातार पेश कर रहे हैं। साथ ही साथ बिहार की जनता को यह भी बताने का प्रयास कर रहे हैं कि नीतीश कुमार कभी भी स्थाई साथी नहीं बना सकते हैं।

 ऐसे में अगर बिहार की जनता ने तेजस्वी की बातों को भली भाँती समझ लिया तो, वहां बड़ा खेला हो सकता है। बिहार चुनाव में महागठबंधन की तरफ से बहुत नेता ऐसे हैं जिनकी अपनी राजनैतिक जमीन है, जबकि एनडीए के पास सिवाय मोदी के एक भी चेहरा ऐसा नहीं है जो अपने बलबूते चुनाव को प्रभावित कर सके। ऐसे में एक बात दावे के साथ कही जा सकती है कि इस बार एनडीए और महागठबंधन की लड़ाई फिलहाल फिफ्टी फिफ्टी होती हुई दिख रही है।

 

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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