चाचा-भतीजा अड़े रहे तो फिर महागठबंधन के खाते में ऐसे चली जायेगी बिहार की हाजीपुर सीट
बिहार की लोकजनशक्ति पार्टी के दोनों घटक, लोजपा (रामविलास) और राष्ट्रीय लोजपा ,आज एनडीए में शामिल हो चुके हैं। यानि भाजपा की मर्जी से ही अब तय होगा कि इनमें से किस घटक दल को बिहार की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ना है।
![]() Nitish Kumar,Chirag Paswan, Pashupati Paras |
साथ ही साथ भाजपा यह भी तय करेगी कि दोनों घटकों के खाते में बिहार की कौन-कौन सी लोकसभा की सीटें जाएंगी, बावजूद इसके आज दोनों दलों के मुखिया पशुपति पारस और चिराग पासवान हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने पर आमादा हैं। चिराग पहले ही कह चुके हैं कि वो हाजीपुर से ही चुनाव लड़ेंगे, लेकिन उसको लेकर उनका कोई उग्र रियेक्सन नहीं आ रहा है, जबकि पशुपति पारस हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ने को लेकर इतने उत्तेजित हो गए हैं कि वो शायद यह भी भूल गए हैं कि वो एनडीए गठबंधन के हिस्सा हैं। हाजीपुर सीट को लेकर चाचा पशुपति और भतीजा चिराग पासवान के बीच जिस तरीके से तकरार जारी है, उसे देखकर यह कहना मुश्किल नहीं है कि कहीं इन दोनों की लड़ाई के बीच महागठबंधन का उम्मीदवार बाजी ना मार ले जाए।
वैसे भी लोजपा के किसी भी घटक के नेता का इस बार हाजीपुर से चुनाव जीतना आसान नहीं होगा, क्योंकि उन्हें यह भी याद रखना होगा कि 2019 के चुनाव में नीतीश कुमार, एनडीए के साथ थे, जबकि इस बार वो महागठबंधन के साथ हैं। बिहार की हाजीपुर सीट पासवान परिवार की विरासत मानी जाती है। इस सीट से रामविलास पासवान सात बार सांसद रहे, जबकि अब तक नौ बार यह सीट पासवान परिवार के पास गई है। इस सीट को बनाने में रामविलास पासवान का बहुत बड़ा योगदान रहा है। 1977 में राम विलास पासवान ने यहाँ से रिकार्ड मतों से जीत दर्ज की थी। उन्होंने ही लोकजन शक्ति पार्टी बनाई थी। लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके छोटे भाई पशुपति पारस अधिकांश सांसदों को साथ लेकर एनडीए में शामिल हो गए थे।
उन्हें भाजपा ने केंद्र में मंत्री भी बना दिया था। यही नहीं उन्होंने राष्ट्रीय लोकजन शक्ति नाम से अपनी नई पार्टी बना ली थी। यानि रामविलास पासवान वाली पार्टी पर उन्होंने कब्ज़ा जमा लिया था, जबकि चिराग पासवान लाख कोशिश करने के बाद भी कुछ नहीं कर पाए थे। चिराग उस समय अपमान का घूंट पीकर चुपचाप तमाशा देखते रहे, लेकिन उन्हें विश्वास था कि उनका भी एक न एक दिन समय आएगा। वो इंतज़ार करते रहे। भाजपा के प्रति अपना विश्वास जताते रहे और अपने आपको प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान भी बताते रहे। चिराग पासवान को उनकी सब्र और भाजपा के प्रति आस्था का फल पिछले दिनों मिल ही गया।
एनडीए की बैठक में भाजपा के अध्यक्ष जे पी नड्डा ने उन्हें एनडीए की बैठक में शामिल होने न्यौता भेजा। उस बैठक में 38 दलों के नेता शामिल हुए, लेकिन मोदी ने जिस तरीके से चिराग पासवान पर प्यार लुटाया, उसे देखकर भले ही बाकी दलों के नेता खुश हुए होंगे लेकिन पशुपति पारस निश्चित ही तिलमिला गए होंगे।
खैर एनडीए की बैठक संपन्न होने के बाद सभी नेता अपने- अपने राज्यों को लौट गए। सबने अपनी-अपनी रणनीति भी बनानी भी शुरू कर दीं। बैठक में शामिल किसी भी पार्टी के किसी भी नेता की तरफ से मनमुटाव की खबरें सुनने को नहीं मिलीं, लेकिन लोजपा के दोनों घटकों के नेताओं के बीच जुबानी जंग शुरू हो गई थीं। चाचा पशुपति पारस ने बिहार पहुँचते ही एलान कर दिया कि वो हाजीपुर से ही चुनाव लड़ेंगे, जबकि चिराग पासवान पहले ही कह चुके हैं कि वह सीट उनके पिता राम विलास पासवान की विरासत है, लिहाजा हाजीपुर से वो ही चुनाव लड़ेंगे।
इन दोनों नेताओं को पता है कि अब कोई भी फैसला खुद से नहीं कर सकते क्योंकि अब वो दोनों एनडीए के हिस्सा बन चुके हैं। इन दोनों नेताओं की पार्टियों को कितनी सीटें मिलेंगी इसका बहुत हद तक फैसला भाजपा करेगी। हाजीपुर सीट भी भाजपा की मर्जी पर ही मिलने वाली है। चिराग हालांकि हाजीपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन उनके ब्यान में बहुत तल्खी नहीं है, जबकि पशुपति इस तरह से बयान दे रहे हैं, जैसे कि उन्ही की मर्जी चलने वाली है। चिराग पासवान अपने चाचा के बयान के बाद कई बार कह चुके हैं कि अब चाचा गठबंधन के हिस्सा हैं, लिहाजा उन्हें गठबंधन की मर्यादा को समझनी चाहिए। उन्हें धैर्य रखनी चाहिए, लेकिन चाचा की सेहत पर चिराग पासवान की बातों का कोई असर नहीं होता दिख रहा है।
हाजीपुर सीट किसके खाते में जाएगी, इसका भी खुलासा हो ही जाएगा, लेकिन जिस सीट को चाचा और भतीजा दोनों ने अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा बना रखा है, उस सीट पर जीत हासिल करना इतना आसान भी नहीं है, चाहे वहां से पशुपति चुनाव लड़ें या फिर चिराग। उन्हें याद होना चाहिए की 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार उस समय उनके साथ थे। वहां की जीत में नीतीश कुमार का बहुत बड़ा योगदान था। इस बार वहां से चुनाव, चाचा लड़ें या फिर भतीजा, दोनों को नाकों चने चबाने पड़ेंगे। कही ऐसा न हो कि अपनी विरासत बताने वाली यह सीट, पशुपति और चिराग के हाथों से निकल कर गठबंधन के खाते में चली जाए।
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