महापर्व छठ का दूसरा दिन, खरना करने की हैं परम्परा

Last Updated 25 Oct 2017 11:38:31 AM IST

बिहार में लोकआस्था के चार दिवसीय महापर्व छठ के आज दूसरे दिन राजधानी पटना समेत राज्य के विभिन्न इलाकों में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा नदी समेत अन्य नदियों और तालाबों में स्नान किया.


महापर्व छठ का दूसरा दिन, खरना आज

गंगा नदी में आज सुबह स्नान करने के बाद व्रती समेत उनके परिवार के सदस्य गंगाजल लेकर अपने घर लौटे और पूजा की तैयारी में जुट गये हैं. व्रत का आज दूसरा दिन है इस दिन खरना व्रत की परंपरा निभाई जाती है, जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी तिथि होती है. ऐसी मान्यता है कि खरना के दिन यदि किसी भी तरह की आवाज हो तो व्रती खाना वहीं छोड़ देते हैं. इसलिए इस दिन लोग ये ध्यान रखते हैं कि व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के समय आसपास शोर-शराबा ना हो.

श्रद्धालु आज पूरे दिन बिना जलग्रहण किये उपवास रखने के बाद सूर्यास्त होने पर भगवान भास्कर की पूजा अर्चना करेगें और उसके बाद दूध एवं गुड़ से बनी खीर का भोग लगाकर उसे सिर्फ एक बार खायेंगे तथा जब तक चांद नजर आयेगा तब तक ही जल ग्रहण कर सकेंगे. उसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निराहार व्रत शुरू हो जायेगा.

महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को नदी और तालाब में खड़े होकर फल एवं कंद मूल से प्रथम अघ्र्य अर्पित करते हैं . पर्व के चौथे और अंतिम दिन फिर नदियों और तालाबों में व्रतधारी उदीयमान सूर्य को दूसरा अघ्र्य देते हैं. दूसरा अघ्र्य अर्पित करने के बाद ही श्रद्धालुओं का 36 घंटे का निराहार व्रत समाप्त होता है और वे अन्न ग्रहण करते हैं.

इस बीच बिहार के औरंगाबाद जिले के ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और पौराणिक स्थल देव में लोकपर्व कार्तिक छठ के मौके पर लगने वाला प्राचीन छठ मेला भी शुरू हो गया है.

लोक मान्यता है कि भगवान भास्कर की नगरी देव में पवित्र छठ व्रत करने एवं इस अवसर परोतायुगीन सूर्य मंदिर में आराधना करने से सूर्य भगवान के साक्षात दर्शन की रोमांचक अनुभूति होती है और किसी भी मनोकामना की पूर्ति होती है.

मंदिर की अभूतपूर्व स्थापत्य कला, शिल्प, कलात्मक भव्यता और धार्मिक महत्ता के कारण ही जनमानस में यह किंवदति प्रसिद्ध है कि इसका निर्माण देवशिल्पी भगवान विकर्मा ने स्वयं अपने हाथों से किया है.

देव स्थित भगवान भास्कर का विशाल मंदिर अपने अप्रतिम सौंदर्य और शिल्प के कारण सदियों से श्रद्धालुओं, वैज्ञानिकों, मूर्तिचोरों, तस्करों एवं आमजनों के लिए आकषर्ण का केंद्र है. काले और भूरे पत्थरों की अति सुंदर कृति जिस तरह उड़ीसा प्रदेश के पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर का शिल्प है, ठीक उसी से मिलता-जुलता शिल्प देव के प्राचीन सूर्य मंदिर का भी है.

इस छठ मेला में अन्य प्रांतों तथा बिहार के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं तथा व्रतधारियों के यहां पहुंचने का सिलसिला शनिवार से ही शुरू हो गया था. साम्प्रदायिक सदभाव की मिसाल चार दिनों के छठ मेले को सभी धर्मों के लोग मिल-जुल कर सफल बनाते हैं और भगवान भास्कर की आराधना करते हैं.
 

वार्ता


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