निगमायुक्त के निलंबन का मामला : वकीलों का विरोध, जजों को सुनवाई रोकनी पड़ी
वकीलों के भारी विरोध के कारण बृहस्पतिवार को पटना हाईकोर्ट में नगर निगम के आयुक्त कुलदीप नारायण के निलंबन पर सुनवाई पूरी नहीं हो सकी.
पटना हाईकोर्ट में नगर निगम के आयुक्त कुलदीप नारायण (फाइल फोटो) |
वकीलों ने तीन सदस्यीय खंडपीठ पर निगमायुक्त का पूरा पक्ष नहीं सुनने का आरोप लगाते हुए इसके गठन पर ही सवाल खड़ा कर दिया. इसी दरम्यान कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश इकबाल अहमद अंसारी ने खंडपीठ के अन्य दो न्यायमूर्तियों वीएन सिन्हा और नवनीति प्रसाद सिंह को उठकर चलने का इशारा किया, जिसके बाद वे सभी चले गये.
यह पटना उच्च न्यायालय की ऐतिहासिक घटना है.
याचिकाकर्ता सुरेश प्रसाद यादव के अधिवक्ता ने खंडपीठ से कहा कि उनके मामले की सुनवाई 19 दिसम्बर के लिए निर्धारित थी. इस बीच उनसे बिना अनुमति के ही कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की दो सदस्यीय पीठ के समक्ष निगमायुक्त के निलंबन का मुद्दा उठाया गया और पीठ ने उनका पक्ष सुने बगैर उनके व नरेन्द्र मिश्रा मामले की सुनवाई तीन सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष भेज दी. इस तरह के रुख से उन्हें खंडपीठ के गठन पर ही संदेह होता है.
वहीं निगम के अधिवक्ता प्रसून सिन्हा ने सवाल उठाया कि तीन सदस्यीय पीठ के एक न्यायमूर्ति ने अवमानना मामले में निगमायुक्त को जेल भेजने की चेतावनी दी थी, लिहाजा वे इस मामले की सुनवाई कैसे कर सकते हैं? निगम के एक अन्य अधिवक्ता एचएस हिमकर ने कहा कि जब पीठ निगमायुक्त के पूरे पक्ष को सुनना ही नहीं चाहती है तो उसे चाहिये कि वे एकतरफा आदेश पारित कर दे.
याचिकाकर्ता नरेन्द्र मिश्रा के अधिवक्ता सुरेश राय ने कहा कि इस पीठ का गठन क्यों किया गया है, यह मुझे समझ में ही नहीं आ रहा. अधिवक्ता एसएन पाठक ने कहा कि जब निगमायुक्त जनहित से संबंधित कामों को निपटाने में लगे हैं और वे अवैध बहुमंजिली इमारतों से संबंधित आदेश पारित करने वाले हैं, तभी सरकार ने कोर्ट से बगैर अनुमति लिये निगमायुक्त को निलंबित कर दिया. इस तरह की आपत्तियों के बाद पीठ के तीनों जज सुनवाई बीच में ही छोड़कर चले गये.
निगम व निगमायुक्त की तरफ से वरीय अधिवक्ता वाईबी गिरी ने न्यायालय से कहा कि जब न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा की खंडपीठ ने निगमायुक्त के निलंबन पर फैसला सुरक्षित रखा था तो उसकी अनुमति लिये बगैर नरेन्द्र मिश्रा के मामले को तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष कैसे भेज दिया गया. उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय की नियमावली के अनुसार न्यायिक आदेश के तहत कोई पीठ किसी दूसरी पीठ के मामले को तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष नहीं भेज सकता, लेकिन इस मामले में ऐसा ही हुआ है. उसने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ऐसा किया है, जो गलत है.
उन्होंने कहा कि कोर्ट ने निगमायुक्त के स्थानांतरण पर रोक लगा दी है, ताकि अवैध रूप से खड़ी की गयी बहुमंजिली इमारत के मामले में आदेश पारित करने में कठिनाई न हो. अब निगमायुक्त को निलंबित कर दिया गया है. अपरोक्ष रूप से उन्हें अवैध बहुमंजिली इमारतों के खिलाफ कार्रवाई करने से ही हटाया गया है. सरकार ने अदालत की अवमानना की है. उन्होंने कहा कि सरकार और निगम दोनों स्वतंत्र हैं. जब कुलदीप नारायण को निगम आयुक्त बना दिया गया तो वे स्वतंत्र निकाय के मुखिया हैं और उन्हें सरकार निलंबित नहीं कर सकती.
अधिवक्ता गिरी ने कहा कि कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की दो सदस्यीय खंडपीठ ने सुरेश प्रसाद यादव के मामले में सुनवाई करते हुए विचार व्यक्त किया था कि जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान निलंबन के मामले को नहीं सुना जा सकता. यह टिप्पणी है न कि अदालती आदेश. इस वजह से ही न्यायमूर्ति वीएन सिन्हा की दो सदस्यीय खंड पीठ ने निगमायुक्त के निलंबन पर रोक लगा दी थी.
इसमें कानून की अवहेलना नहीं हुई, बल्कि सरकार ने ही अदालती आदेश की अवहेलना कर निगमायुक्त को निलंबित किया है. अदालती आदेश के खिलाफ सरकार द्वारा की गयी निलंबन की कार्रवाई न तो कोई मायने रखती है और न ही उसका कोई औचित्य है. उन्होंने कहा कि सुरेश प्रसाद यादव के मामले की सुनवाई के दौरान निलंबन के मुद्दे को नहीं सुना जाना भी सरकार ने बिना वजह कह दिया था.
वहां इसे कहने की कोई जरूरत ही नहीं थी.तीन सदस्यीय खंडपीठ ने टिप्पणी की थी कि जब सरकार निगमायुक्त को नियुक्त कर सकती है तो वह निलंबित भी कर सकती है. यहां मुद्दा जनहित मामले की सुनवाई के दौरान निलंबन के मुद्दे पर सुनवाई नहीं किये जाने का है. आप इसपर जवाब दें. सरकार क्यों नहीं निगमायुक्त को निलंबित कर सकती है.
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