कंप्यूटर के युग में भी प्रासंगिक है, जहां रखा जाता है सैकड़ों पूर्वजो का बही-खाता

Last Updated 03 Apr 2021 03:04:54 PM IST

कंप्यूटर के दौर में भी कागजों की ‘बहीखाते’ की महत्ता प्रासंगिक हैं क्योंकि इनमें लोगों के पूर्वजों की हाथ से लिखी सूचनाएं दर्ज हैं और इस पर उन्होंने हस्ताक्षर भी कर रखे हैं।


जहां रखा जाता है पूर्वजो का बही-खाता (प्रतिकात्मक फोटो)

हरिद्वार में हर की पौडी के समीप स्थित कुशाघाट में बने पंडों के मकानों में जब आप कदम रखेंगे तो आपको अलमारियों में भरे पीले पन्ने वाले भारी भरकम ‘बहीखाते’ दिखेंगे जो पहली नजर में तो सामान्य लगेंगे लेकिन उनमें कई पीढियों का इतिहास मिलेगा।      

ये ‘बहीखाते’ दिखने में कबाड़ लग सकते हैं लेकिन मकान मालिक के लिए दशकों पुराने इन पन्नों में कई परिवारों का इतिहास समाया है।      

गंगा नदी में अपने पाप धोने या अपने प्रियजन का अंतिम संस्कार करने के लिए हजारो हिंदू श्रद्धालु हरिद्वार आते हैं तो उनके पारिवारिक पुजारी कागजों की इन पोथियों में उनके रिकॉर्ड सहेजने में मदद करते हैं।      

एक पुजारी कुशाल सिखौला ने ऐसी ही एक पोथी के पन्ने सावधानी से पलटते हुए बताया कि हरिद्वार में रह रहे करीब 2,000 पंडे ‘बही खातों’ में अपने ग्राहकों की वंशावली को संरक्षित रखते हैं। इन पोथियों को संभालकर रखना पड़ता है क्योंकि इनके पन्ने बहुत पुराने होने के कारण नाजुक हो गए हैं।    

उन्होंने बताया कि कागज की खोज होने के साथ यह परंपरा शुरू हुई और अब तक चल रही है। कागज की खोज से पहले ये ‘बही खाते’ ‘भोजपत्र’ पर बनाए जाते थे लेकिन वे रिकॉर्ड अब उपलब्ध नहीं हैं।      

हरिद्वार के पंडे मूल रूप से इसी शहर के रहने वाले हैं। गंगा मां के दर्शन करने के लिए आने वाले लोगों की परिवार की जानकारियां रिकॉर्ड करने की प्रथा से पहले पंडे उनके नाम, कुल और मूल स्थान याद रखते थे तथा अपनी अगली पीढियों को जुबानी तौर पर यह जानकारी देते थे।    

 पंडों का यह ‘बही खाता’ उनके पास आने वाले लोगों के गांव, जिले और राज्य के आधार पर बनता है।      

सिखौला ने दावा किया कि पंडों के पास उपलब्ध ये ‘बही खाते’ और पारिवारिक जानकारियां कानूनी तौर पर भी वैध मानी जाती हैं। उन्होंने बताया कि हाथ से लिखी इन प्राचीन पोथियों में दर्ज लोगों की मौत के बाद भी जमीन से जुड़े विवाद इन दस्तावेजों से उपलब्ध कराई गई सूचना के आधार पर सुलझाए गए हैं।       

उन्होंने बताया कि आम लोगों के अलावा इन ‘बही खातों’ में राजाओं और शासकों की पीढियों की भी जानकारी मिल सकती है।      

सिखौला ने दावा किया कि कंप्यूटर के दौर में भी कागजों की इन पोथियों की महत्ता प्रासंगिक हैं क्योंकि इनमें लोगों के पूर्वजों की हाथ से लिखी सूचनाएं दर्ज हैं और इस पर उन्होंने हस्ताक्षर भी कर रखे हैं।
 

भाषा
हरिद्वार (उत्तराखंड)


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