सरसों के दाने जितनी भगवत गीता लाने की तैयारी में हैं मुकुल डे
यह अजीब लग सकता है लेकिन मुकुल डे अपने बडे-बडे विचारों को छोटे रूपों में ढालने वाले इतनी लघु किताबें और डायरियां बनाते हैं जो किसी बीज या चने पर आसानी से चिपक जाए.
फाइल फोटो |
पिछले तीन दशकों से अपने दिन का ज्यादातर समय छोटी-छोटी किताबें बनाने में लगाते हैं जिनमें से कुछ के लिए उन्हें देश और विदेश में कई पुरस्कार भी मिले हैं.
साठ बरस की उम्र वाले डे अब एक नए अभियान पर हैं. वह हाथ से बनाई एक छोटी सी नोटबुक पर तीन अलग-अलग भाषाओं में भगवत गीता अंकित करना चाहते है. यह इतनी छोटी होगी कि सरसों के एक दाने पर आए जाए.
उन्होंने कहा, ‘‘चार इंच लंबी दो इंच चौडी डायरी से लेकर एक इंच लंबी दो इंच चौडी डायरी बनाने के बाद अब मैं केवल 0.35 मिलीमीटर लंबी किताब बना रहा हूं. मैं जानता हूं कि इसकी कल्पना करना मुश्किल है.’’
इच्छापुर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री के अपर डिवीजन क्लर्क के तौर पर सेवानिवृत्त हुए डे ने बताया कि यह सब करीब 30 साल पहले संयोग से शुरू हुआ. एक दिन डे की बेटी संचिता की हाथ से बनाई स्कूल डायरी खो गई जिसे अगले दिन जमा कराना था. उसके पिता ने रातभर वैसी ही डायरी बनाने का वादा किया.
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने उस दिन चार इंच लंबी तीन इंच चौडी डायरी बनाई जिससे मेरी बेटी के शिक्षक भी बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने अपने निजी संग्रह के लिए ऐसी और छोटी-छोटी डायरियां बनाने का अनुरोध किया.
लिम्का बुक ऑफ रिकॉडर्स ने वर्ष 1993 में उनका काम दर्ज किया. भारतीय फिल्म विभाग ने उन पर एक डॉक्यूमेंट्री की है. दूरदर्शन ने मिर्च मसाला का एक पूरा एपिसोड उनके काम पर प्रसारित किया.
डे का कलेक्शन अब 12,000 पर पहुंच गया है और इसमें सरसों के दाने तथा सूखे चने पर लगी लघु किताबें और नोटबुक शामिल हैं.
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