चांदी की मछली ने विदेशों में भी जमाई धाक

Last Updated 27 Oct 2016 10:05:47 AM IST

हिंदुस्तान ही नहीं, अब विदेशों में भी हमीरपुर जिले के मौदहा की बनी चांदी की मछली लोकप्रिय है.


चांदी की मछली ने विदेशों में भी जमाई धाक

चांदी की मछली का आविष्कार करीब 150 वर्ष पूर्व हमीरपुर जिले के मौदहा कस्बे में जागेश्वर प्रसाद सोनी ने किया था. इतिहासकार अबुल फजल आए थे.

उन्होंने आइने अकबरी में लिखा था कि यहां के लोगों में ईश्वरी साधन उपलब्ध है. उसने चांदी की मछली का भी उल्लेख किया था.

उप्र में सिर्फ मौदहा कस्बे में एक ही स्वर्णकार परिवार के पास मछली बनाने की कला है. यहां की चांदी की मछली देश और विदेशों में भी लोकप्रिय हो गई है. खाड़ी देशों में भी यहां की चांदी से बनी मछलियों ने धूम मचाई है.

मछली निर्माण में विख्यात होने पर जागेश्वर प्रसाद सोनी को वर्ष 1981 में तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सम्मानित किया था. चांदी से छोटी बड़ी आकर्षक मछलियों को देख महारानी विक्टोरिया ने भी इस स्वर्णकार को तांबे का मेडल देकर सम्मानित किया था.

लोग क्यों खरीदते है चांदी की मछली?

मछली को लोग शुभ मानते हैं, इसलिए इसे घरों के ड्राइंग रूम में सजाकर घर की शोभा बढ़ाते हैं. वीआईपी लोगों में भी इसकी डिमांड होती है. देश के अन्य स्थानों में नाना प्रकार की कलाकृतियां विख्यात हैं, लेकिन चांदी की निर्मित मछली आज देश भर में विख्यात हो गई है.

विश्व विख्यात चांदी की मछली का निर्माण उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जनपद के मौदहा तहसील मुख्यालय में उपरौंस मुहाल में हो रहा है. मुगल काल में इस कला के प्रति लगाव जगजाहिर है.

यहां के प्राचीन भवनों व दरवाजों और बर्तनों में खुदी कलाकृतियां इसकी गवाह हैं. भारतीय परंपरा में आस्था व विश्वास के आधार पर खास दिवसों व पर्वो पर चांदी की मछली रखना शुभ माना जाता है.

प्राचीन काल में व्यापारी भी भोर के समय सबसे पहले मछली देखना पसंद करते थे. इसका उल्लेख भी तमाम पुस्तकों तक में आया है.

जागेश्वर प्रसाद सोनी के निधन के बाद अब उनके नाती और पौत्र राजेंद्र सोनी, ओमप्रकाश सोनी व रामप्रकाश सोनी मछली बनाते हैं. उप्र व अन्य किसी भी राज्य में चांदी की मछली बनाने का काम नहीं होता है.

मगर हमीरपुर में यह कलाकृति बड़े उद्योग की शक्ल ले चुका है. चांदी की मछली इतनी आकर्षक होती है कि इसे गिफ्ट देने के लिए भी खरीदा जाता है.

स्वर्णकारों का कहना है कि महंगाई के इस दौर में अब चांदी की बनी मछलियां घरों की शोभा बढ़ाने के लिए सिर्फ बड़े लोग ही खरीदते हैं.

और तो और यहां की बनी चांदी की मछली छत्तीसगढ़, मप्र व खाड़ी देशों में भी बेची गई है. बाहर के लोग हाथों हाथ इसे खरीदते हैं.

पानी में डालने पर तैरती है मछली

स्वर्णकार राजेंद्र सोनी का कहना है कि जैसे पानी के बाहर मछली शरीर को लोच देती है. ठीक वैसे इस मछली में भी लोच देखी जा सकती है. पानी में डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि चांदी की मछली तैर रही हो. इसके अलावा मछली का प्रयोग इत्र रखने में भी होता है.

मछली बनाने के बारे में स्वर्णकार ने बताया कि सबसे पहले मछली की पूंछ बनाई जाती है. फिर पत्ती काट छल्लेदार टुकड़े होते हैं. जीरा कटान पत्ती को छल्लेदार टुकड़े बनाते हुए कसा जाता है. इसके बाद सिर, मुंह, पंख व अंत में इसमें लाल नग लगा दिया जाता है.

चांदी की मछली बनाने में कई घंटे का समय लगता है. मगर सरकारी तौर पर कोई मदद न मिलने से अब यह कला दम तोड़ रही है. स्वर्णकार का कहना है कि चांदी की मछली की मांग सिर्फ हमीरपुर में कभी कभार वीआईपी लोगों के आने पर होती है. इसके बाद कोई चांदी की मछली के बारे में पूछने नहीं आता. दीपावली पर्व पर चांदी की छोटी मछलियों की मांग बढ़ जाती है.
 

आईएएनएस


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