महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी कर रहें है राजनीतिक दल
महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने का दम भरने वाले राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में फर्क है.
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महिला आरक्षण और महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने का दम भरने वाले राजनीतिक दल अपने मंचों से तो ऐसे ऐलान करते हैं लेकिन जब हकीकत में भागीदारी की बात आती है तो वे अपने कदम पीछे खींच लेते हैं.
मायावती, रीता बहुगुणा जोशी और उमा भारती जैसे महिला चेहरों को आगे करके उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कूदे ये दल महिलाओं को टिकट देने में कंजूसी करते दिख रहे हैं.
मुख्यमंत्री मायावती के नेतृत्व में चुनाव लड़ रही बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने इस विधानसभा चुनाव के लिए घोषित सभी 403 उम्मीदवारों में केवल 29 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है.
वहीं राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर नेतृत्व का कमान महिलाओं के हाथ में थमाने वाली पार्टी कांग्रेस ने अब तक घोषित 325 उम्मीदवारों में केवल 20 महिलाओं को प्रत्याशी बनाया है.
राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की कमान सोनिया गांधी के हाथों में है तो प्रदेश स्तर पर रीता बहुगुणा जोशी पर पार्टी की नय्या पार कराने की जिम्मेदारी है.
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को आगे कर मैदान में कूदी भाजपा के अब तक घोषित 381 उम्मीदवारों में सिर्फ 43 महिलाएं हैं.
बीते विधानसभा चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने 36, भाजपा ने 34 और बसपा ने केवल 14 महिलाओं को मैदान में उतारा था.
कुल मिलाकर वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में कुल 370 महिलाएं मैदान में थीं जिसमें से महज 23 ने जीत हासिल की थी.
पिछले विधानसभा चुनाव में महिला उम्मीदवारों को मिले टिकट से अब तक घोषित उम्मीदवारों की तुलना की जाए तो औरतों को बराबरी का दर्जा देने की सबसे ज्यादा वकालत करने वाली कांग्रेस महिलाओं को टिकट देने में पीछे दिख रही है.
वहीं भाजपा और बसपा ने इस बार महिला उम्मीदवारों की संख्या में मामूली वृद्धि की है.
इस बारे में पूछे जाने पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता वीरेंद्र मदान ने कहा, "कांग्रेस पार्टी टिकट वितरण में महिलाओं को उचित भागीदारी देगी.
उन्होंने कहा कि 403 में से अभी तक हमारे केवल 325 उम्मीदवार घोषित हुए हैं.पूरी सूची घोषित हो जाने दीजिए."
संसद और विधानमंडलों में 33 फीसदी महिला आरक्षण का विरोध करने वाली सपा की कमोवेश हालत पिछले चुनाव जैसी ही है.
पिछले चुनाव में सपा के कुल 393 उम्मीदवारों में केवल 27 महिलाएं थी इस बार घोषित 403 उम्मीदवारों में केवल 26 महिला प्रत्याशी हैं.
राजनीतिक चिंतक एच. एन. दीक्षित राजनीतिक दलों के इस रवैये पर आईएएनएस से कहते हैं, "वर्तमान दौर में राजनीतिक दलों के आदर्श और व्यवहार में बहुत फर्क आ गया है.
टिकट वितरण से पहले राजनीतिक दलों के आदर्श भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं जैसे महिलाओं को उचित भागीदारी देने और केवल साफ-सुथरी छवि वाले नेताओं को टिकट देने का वादा, लेकिन चुनाव नजदीक आते ही इनका व्यवहार बदल जाता है.कथनी और करनी में फर्क आ जाता है."
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