बसपा के सौ विधायक आउट, पार्टी ने अपनाया पुराना फर्मूला

Last Updated 16 Jan 2012 04:02:22 PM IST

बहुजन समाज पार्टी ने इस विधानसभा चुनाव में भी 'सोशल इंजीनियरिंग' का फार्मूला अपनाया है.




'सोशल इंजीनियरिंग' का मंत्र अपनाकर सत्ताशीर्ष पर पहुंची मायावती की अगुवाई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) इस बार भी इसी फार्मूले पर चल रही है. इसके तहत जहां पार्टी ने सभी वर्ग-जाति के लोगों को टिकट दिया गया है वहीं दागी विधायकों के पत्ता साफ कर दिये गये हैं.

साथ ही पार्टी दागी किस्म के अपने करीब 100 मौजूदा विधायकों से किनारा करके छवि सुधार की कवायद में लगी हुई है. मालूम हो कि वर्ष 2007 में हुए विधानसभा चुनाव में बसपा ने 'सोशल इंजीनियरिंग' का रास्ता अपना कर सत्ता हासिल की थी.
     
बसपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि जनता के बीच स्वच्छ छवि के साथ जाने के मकसद से पार्टी ने दागी या खराब छवि वाले करीब 100 मौजूदा विधायकों को टिकट नहीं दिये हैं.

ऐसे विधायकों को इस बात के संकेत करीब दो महीने पहले ही दे दिये गये थे जब मुख्यमंत्री ने भ्रष्टाचार में संलिप्तता और जनसमस्याओं पर ध्यान नहीं देने के आरोप में अपने अनेक मंत्रियों को बर्खास्त करना शुरू किया था.
     
बसपा ने इस बार राम अचल राजभर, राकेशधर त्रिपाठी, सुभाष चंद्र पाण्डेय, बादशाह सिंह, अवधपाल सिंह यादव, फतेह बहादुर सिंह, सदल प्रसाद, अशोक दोहरे, आनंद सेन यादव, अनंत मिश्र, रतनलाल अहिरवार, अनीस अंसारी, शहजिल इस्लाम, चंद्रदेव राम यादव, राजपाल त्यागी, नारायण सिंह, अवधेश कुमार वर्मा, हरिओम उपाध्याय और अकबर हुसैन जैसे प्रदेश के अनेक पूर्व मंत्रियों के टिकट काट दिये हैं.
     
बसपा पदाधिकारी ने बताया कि पिछली बार के हिट सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला को पार्टी एक बार फिर मजबूती से थामकर चल रही है.
 

साफ-सुथरी छवि वालों को तबज्जो

उन्होंने बताया कि सर्वजन हिताय के फामरूला के तहत बसपा ने आगामी विधानसभा चुनाव में जातीय संतुलन बरकरार रखते हुए अनुसूचित जाति के 88, अन्य पिछड़ा वर्ग के 113, मुसलमान वर्ग के 85 सवर्ण जाति 117 लोगों को टिकट दिया है, जिनमें से ब्राह्मणों को 74 तथा क्षत्रियों को दिये गये 33 टिकट शामिल हैं. इसके अलावा दल ने वैश्य, कायस्थ तथा पंजाबियों को भी टिकट दिये हैं.

पदाधिकारी ने बताया कि पार्टी ने इस बार प्रत्याशियों के चयन में इस बात का काफी हद तक ध्यान रखा है कि वे साफ सुथरी छवि वाले तथा बसपा आंदोलन के प्रति समर्पित हों. साथ ही वे क्षेत्र के विकास पर ध्यान देते हों.
    
मुख्यमंत्री मायावती ने भी रविवार को प्रत्याशियों की अंतिम सूची जारी करते हुए कहा था कि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी के भोले-भाले लोगों को झांसे में रखकर कई लोग दल से टिकट लेने में कामयाब हो गये थे और उन्होंने चुनाव जीतने के बाद गलत कार्यों में लिप्त होकर पार्टी और सरकार की छवि धूमिल की.
    

सभी जाति-वर्ग के लोगों को टिकट

बसपा ने वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति बदलते हुए अनुसूचित जाति एवं जनजाति के 97, अन्य पिछड़ा वर्ग के 126, मुस्लिम समाज के 86, ब्राह्मण समाज के 37 तथा क्षत्रिय समाज के 36 प्रत्याशियों को टिकट दिये थे.
    
कभी 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' का नारा देने वाली बसपा ने साल 2007 के चुनाव में अपनी रणनीति बदलते हुए ब्राह्मणों को खास तरजीह दी और संयोग से उसका सोशल इंजीनियरिंग का यह फार्मूला हिट हो गया, नतीजतन बसपा अप्रत्याशित रूप से पूर्ण बहुमत से सत्ता में आ गयी.
    
साल 2007 के चुनाव में बसपा ने 86 ब्राह्मणों, 38 क्षत्रियों, 93 दलितों, अन्य पिछड़ा वर्ग के 110 लोगों तथा 61 मुसलमानों को टिकट दिया था और उसे चुनाव में 206 सीटों के रूप में बहुमत मिला था.
    
'सोशल इंजीनियरिंग' का यह जांचा-परखा फार्मूला इस बार बसपा के लिये कितना फायदेमंद होगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि बदले माहौल में बसपा को इससे तमाम उम्मीदें होंगी.

 



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