बीजेपी के धुरंधरों की डगर नहीं आसान
उत्तर प्रदेश के चुनावी मैदान में यूं तो बीजेपी के कई दिग्गज खम ठोंक रहे हैं, लेकिन इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनकी डगर आसान नहीं दिख रही है.
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प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, विधानमंडल दल के नेता ओमप्रकाश सिंह और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी ऐसे नेताओं में हैं जिन्हें अपनी जीत के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है.
ओमप्रकाश सिंह जहां मिर्जापुर की चुनार विधानसभा सीट से लगातार चार बार से विजेता बने हुए हैं, वहीं शाही पिछले दो चुनावों से हार का सामना कर रहे हैं. शाही के सामने 'करो या मरो' की स्थिति होगी तो पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रमापति राम त्रिपाठी की मुश्किलें भी कम नहीं हैं. पार्टी ने इस बार उन्हें महाराजगंज की सिसवा विधानसभा सीट से मैदान में उतारा है.
प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद चुनाव में जीत हासिल करना शाही के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन गया है. कसया विधानसभा सीट से वह दो बार हार चुके हैं और इस बार परिसीमन के बाद बनी नई सीट पथरदेवा से वह अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. विकास के लिहाज से पिछड़े इस क्षेत्र में विरोधियों के निशाने पर शाही ही हैं.
यह सीट परिसीमन के बाद उभरी है और शाही के सामने नए प्रतिद्वंद्वी भी हैं. शाही का मुकाबला इस बार सपा प्रत्याशी और पूर्व मंत्री शाकिर अली, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के संजय सिंह और कांग्रस के नियाज खान के बीच होगी.
कसया, गौरीबाजार और देवरिया सदर विधानसभा क्षेत्रों को काटकर बने पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र में तीन लाख 21 हजार मतदाता शाही की किस्मत का फैसला करेंगे. पिछले चुनावों में शाही के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी सपा के ब्रह्मशंकर त्रिपाठी रहे हैं.
बीजेपी विधानमंडल दल के नेता ओमप्रकाश सिंह की स्थिति शाही से एकदम उलट है. शाही जहां लगातार दो बार से हार का स्वाद चखने के बाद दबाव में हैं, वहीं दूसरी ओर ओमप्रकाश सिंह वर्ष 1993 से लेकर 2007 तक लगातार चार बार मिर्जापुर की चुनार विधानसभा क्षेत्र से अपना परचम लहराते रहे हैं.
चुनार विधानसभा क्षेत्र कुर्मी बहुल होने की वजह से बीजेपी, सपा, कांग्रेस एवं बसपा ने यहां से इसी बिरादरी के उम्मीदवार को मैदान में उतारा है.
ओमप्रकाश सिंह के सियासी दुर्ग में चुनावी जंग पटेलों में ही होगी, लेकिन इस सीट पर निर्णायक भूमिका 30 हजार बियार और 25 हजार सवर्ण मतदाता निभाएंगे.
इस बार उनके मुकाबले में बसपा के घोषित प्रत्याशी घनश्याम पटेल हैं. घनश्याम यदि बसपा का परम्परागत वोट बैंक हासिल करने में कामयाब हुए तो इस सीट पर परिणाम चौंकाने वाले आ सकते हैं.
सपा ने अपने पुराने चेहरे जगतंबा पटेल को ही मैदान में उतारा है और पिछले चुनाव में उन्होंने सिंह को कड़ी टक्कर दी थी. वह करीब 3500 मतों के अंतर से ही पीछे रहे थे.
पूर्व प्रदेश अध्यक्ष व राष्ट्रीय कार्य समिति के सदस्य रमापति राम त्रिपाठी के आने से महाराजगंज की सिसवा विधानसभा सीट भी वीआईपी सीटों में शामिल हो गई है.
पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से भाजपा के उम्मीदवार महंत दूबे चुनाव जीते थे, लेकिन पार्टी ने इस बार त्रिपाठी पर दांव लगाया है. माना जा रहा है कि भाजपा की गढ़ माने जाने वाली इस विधानसभा सीट से प्रदेश के अगली कतार के इस नेता की नैया पार कराने के लिए खाली कराई गई है.
बहरहाल त्रिपाठी की राह आसान नहीं है, क्योंकि समाजवादी पार्टी (सपा) ने पूर्व मंत्री शिवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. पिछली बार वह सपा के टिकट पर ही चुनाव हार गए थे.
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को जहां 51206 वोट मिले थे, वहीं दूसरे नम्बर पर सपा के उम्मीदवार शिवेंद्र थे, जिन्हें 43835 वोट मिले थे.
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