पाकिस्तान को बधाई व 370 हटाने की आलोचना जुर्म नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Last Updated 09 Mar 2024 07:46:41 AM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान के नागरिकों को देश की आजादी पर बधाई देना अपराध नहीं है। कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने के केन्द्र के फैसले के खिलाफ विरोध व्यक्त करना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है।


सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया पर इस तरह की पोस्ट डालने वाले प्रोफेसर के खिलाफ महाराष्ट्र पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर को निरस्त करते हुए महाराष्ट्र पुलिस की तीखी आलोचना की।  

जस्टिस अभय श्रीनिवास ओका और उज्जल भुइयां ने कश्मीरी मूल के प्रोफेसर जावेद अहमद हजम के खिलाफ कोल्हापुर पुलिस द्वारा आईपीसी की धारा 153ए के तहत एफआईआर को कानून का दुरुपयोग बताया।

जावेद कोल्हापुर के संजय गोदावत कॉलेज में प्रोफेसर हैं। उन्होंने वॉट्सअप ग्रुप में तीन पोस्ट डाली थीं। इस ग्रुप में कॉलेज के छात्र तथा उनके अभिभावक भी सदस्य थे।

13 अगस्त और 15 अगस्त 2022 के बीच उन्होंने समूह के सदस्यों को तीन अलग-अलग संदेश दिए। पांच अगस्त को उन्होंने काला दिवस बताया। भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 को निष्क्रिय करने के केन्द्र सरकार के फैसले के खिलाफ उन्होंने यह पोस्ट डाली थी। यह भी कहा कि अनुच्छेद 370 हटने से वह मायूस हैं।

14 अगस्त को पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर बधाई थी। बॉम्बे हाईकोर्ट ने पाकिस्तान के आजादी दिवस पर बधाई देने के संदेश को सामान्य बताया और इस पर मुकदमा दर्ज करने की कार्रवाई को गलत बताया। हालांकि बाकी दोनों वक्तव्यों को आपत्तिजनक कहा। 

जावेद की अपील का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस को याची के मत को अन्यथा इसलिए नहीं लेना चाहिए कि वह एक खास धर्म से ताल्लुक रखता है। अनुच्छेद 370 को हटाने के सरकार के फैसले का विरोध करने का उसे संवैधानिक अधिकार है। इससे विभिन्न धर्मो के बीच वैमनस्य पैदा नहीं होता।

सुप्रीम कोर्ट ने धारा 153ए की परिभाषा का हवाला देते हुए कहा कि धर्म, जाति या भाषा के आधार पर याची की मंशादो समुदायों के बीच शत्रुता पैदा करने की नहीं थी। उसके शब्द आक्रोश को व्यक्त करते हैं।

लोकतंत्र में अपना मत व्यक्त करने की आजादी है। हर नागरिक को सरकार के फैसले पर असहमति व्यक्त करने का अधिकार है। कोई भी नागरिक कह सकता है कि वह सरकार के निर्णय से खुश नहीं है। सिर्फ कश्मीर को विशेष दर्जा खत्म करने के बारे में नहीं बल्कि सरकार के किसी भी निर्णय से वह अपनी असहमति व्यक्त कर सकता है।

भाषा
नई दिल्ली


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