इंटरनेट के युग में विलुप्त होती किताबें

Last Updated 20 Jan 2024 09:22:18 AM IST

अधिकतर छात्र आसानी से स्वीकार करते हैं कि प्रिंट पढ़ते समय वे ज़्यादा सीखते हैं और उनका ध्यान केंद्रित करते हैं। जबकि डिजिटल पढ़ने से उनका ध्यान इधर उधर भटकता है



किताबें हमारे जीवन शैली का अहम हिस्सा हैं। किताबें पढ़ने का शौक़ अगर किसी व्यक्ति हो जाए तो वो कभी भी अकेला नहीं रहेगा। ये वो पक्की सहलियां हैं जो आपको ज़िंदगी में हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं। ना कि दोस्तों के रुप में छिपे दुश्मनों की तरह पीछे खींचती हैं। जैसे जैसे दुनिया आधुनिक हुोती गई हर क्षेत्र में तरक़्क़ी के रास्ते भी खुलते गए। धीरे धीरे किताबें हमारे हाथ से फिसलकर मोबाइल और कमप्यूटरों में चली गईं। यानि 21वीं सदी की शुरुआत के बाद से, जब वेबसाइट लेखों, ब्लॉगों, ईमेल, सोशल मीडिया पोस्ट और चैट की डिजिटल रीडिंग ने प्रिंट रीडिंग की जगह लेनी शुरू की, तो मनोरंजन के लिए पढ़ने वाले बच्चों की दर में तेज़ी से गिरावट देखी गई।

चाचा चौधरी, चंपक, पिंकी, बिल्लू वो कॉमिक्स थीं जिनको बच्चे किराए पर लाकर पढ़ा करते थे। अंग्रेज़ी में हेरी पोटर, नैनसी ड्रयू, गूज़बंप्स, जैसी पुस्तकें टीन- एज बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र थीं।

एक मेटा-विश्लेषण में पाया गया है कि युवा सांस्कृतिक विचारधारा में पुस्तकों के प्रभाव को कम करने के अलावा, डिजिटल पढ़ने के व्यापक स्विच का अधिक हानिकारक असर पड़ रहा है। बच्चों के पढ़ने की समझ के कौशल पर भी प्रतिकूल असर देखने को मिल रहा है।

2011 में एक खोज में 99 अध्ययनों की समीक्षा की गई जिसमें ये समझने की कोशिश की गई कि बच्चों के समझने के कौशल पर प्रिंट पढ़ने का प्रभाव कितना गहरा होता है। जिसके तहत उन बच्चों ने जो कुछ पढ़ा उसे समझने और याद रखने में उतना ही बेहतर सक्षम हुए। जैसे-जैसे युवा पाठकों ने लंबे और अधिक जटिल पाठों को पढ़ा, उनके पढ़ने के कौशल में सुधार हुआ, जिससे उन्हें और भी मुश्किल लिखित कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया गया, इसका नतीजा ये रहा कि उनकी क्षमताओं में और वृद्धि हुई।

वैज्ञानिकों ने करीब 470,000 प्रतिभागियों के साथ 26 अध्ययन किए। प्रत्येक अध्ययन में डिजिटल पढ़ने के प्रभाव का पता लगाया गया। जिसमें पाया कि डिजिटल पढ़ने से समझने के कौशल में सुधार होता है, लेकिन लाभकारी प्रभाव प्रिंट पढ़ने की तुलना में छह से सात गुना कम है।

लेखकों ने लिखा कि डिजिटल पढ़ने से बच्चे बुनियादी आधार बनाने से वंचित रह सकते हैं। डिजिटल रीडिंग बहुत कम लाभदायक है क्योंकि उसकी भाषा कि गुणवत्ता बहुत कम होती है। चैट करते समय, हम अक्सर सरलीकृत शब्दावली के साथ अनौपचारिक भाषा का उपयोग करते हैं, और हम व्याकरण के नियमों की उपेक्षा करते हैं। कंटेंट बहुत छोटा होता है, जिसमें मुश्किल कथाओं और उनके पात्रों को समझने और आनंद लेने के लिए फोकस की ज़रुरत नहीं होती।

रिसर्च में आगे कहा गया कि किसी पुस्तक या पत्रिका के भौतिक गुण जैसे पन्नों की ख़ुशबू, उसका रूप, अनुभव भी पढ़ने को और अधिक आनंददायक बना देता है। जब पाठकों को पढ़ने के माध्यम से आनंद मिलता है, तो इस आनंद से अधिक समझ पैदा होगी। अध्ययन में हिस्ला लेने वालों ने बताया, प्रिंट ने कहानियों में अधिक लीन होने का कारण बना दिया।

वहीं, डिजिटल स्रोतों पर कंटेंट पढ़ते समय, सोशल मीडिया, यूट्यूब और वीडियो गेम से ध्यान अक्सर बस एक क्लिक की दूरी पर होता है, जिससे पाठ की पूरी समझ में बाधा आती है। एक हालिया अध्ययन में, दो-तिहाई लोगों ने माना कि पढ़ते समय वो सोशल मीडिया को "अक्सर" या "बहुत बार" चेक करते हैं। आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने कहा कि सोशल मीडिया ने उनकी पढ़ने की आदतों पर ख़राब असर डाला है, जबकि 45% ने कहा कि इसका तटस्थ प्रभाव पड़ा और 2.5% ने कहा कि इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ा।

चूंकि युवाओं में सब्र कम होता है, इसलिए डिजिटल रीडिंग में संलग्न होने पर ध्यान भटकने के प्रति वो वयस्कों की तुलना में ज़्यादा संवेदनशील हो सकते हैं। उनके पास शब्दावली और व्याकरण के नियमों में महारत हासिल करने की भी कम संभावना है, क्योंकि वो सोशल मीडिया पर और दोस्तों के साथ चैट में अधिक informal content देखते हैं और पढ़ते हैं।

कई शोधों पर गौर करने के बाद पता चलता है कि अधिकतर छात्र आसानी से स्वीकार करते हैं कि प्रिंट पढ़ते समय वे ज़्यादा सीखते हैं और उनका ध्यान केंद्रित करते हैं। जबकि डिजिटल पढ़ने से उनका ध्यान इधर उधर भटकता है जिसका नतीजा ये होता है कि वो जो पढ़ और दे्ख रहे हैं उसको भी अंत तक नहीं देख पाते और बीच बीच में दूसरी साइटें खोलते हैं।

अब सवाल ये पैदा होता है कि क्या अगली पीढ़ियाँ फिर से प्रिंट की जानिब रुख़ करेंगी?

कश्फी शमाएल
नई दिल्ली


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