बिहार के छोटे-छोटे दलों पर दांव लगाना कहीं भारी न पड़ जाए भाजपा को
एनडीए यानि नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की सोमवार को दिल्ली में बैठक हुई। संभावित सभी दल के नेता इसमें शामिल हुए।
![]() NDA Leaders with Amit Shah |
उत्तर प्रदेश और बिहार के लगभग सभी छोटे दलों को भाजपा ने एनडीए में शामिल करा लिया है, लेकिन बिहार के ही कुछ छोटे दलों के नेताओं की नीदें उडी हुई हैं। खासकर उपेंद्र कुशवाहा और नागमणि की। ये दोनों नेता वहां की कोयरी जाति से बिलांग करते हैं। वोटों के हिसाब से बिहार की यह जाति पिछड़ी जातियों की यादवों के बाद दूसरी सबसे बड़ी जाति है। इस बिरादरी के ये दोनों नेता बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से नाराज चल रहे हैं।
नागमणि ने तो गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात भी कर ली है, जबकि उपेंद्र कुशवाहा अभी पशोपेश में हैं। उम्मीद है बीजेपी इन दोनों नेताओं को अपने पाले में कर लेगी, लेकिन सवाल यह पैदा होता है कि अगर बिहार के सारे छोटे दल भाजपा के साथ आ गए यानि एनडीए के हिस्सा बन गए तो भाजपा बिहार में कितने सीटों पर चुनाव लड़ेगी , क्योंकि सभी दलों को कुछ न कुछ सीटें देनी ही पड़ेगी। ऐसे में वर्षों से लोकसभा का चुनाव लड़ने का मन बना चुके भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को जरूर निराशा होगी।
अपने-अपने क्षेत्रों में चुनाव की तैयारी में अब तक लाखों रूपये खर्च कर चुके भाजपा के दर्जनों संभावित उम्मीदवारों को झटका जरूर लगेगा।
अब तक भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए में बिहार की हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा ,लोकजन शक्ति पार्टी (रामविलास ) लोकजन शक्ति पार्टी (पारस ) नागमणि एनडीए में शामिल हो चुके हैं। यानी जीतन राम मांझी, पशुपति कुमार पारस और चिराग पासवान एनडीए के हिस्सा बन चुके हैं। उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी सम्भवतः इसमें शामिल हो जाए।
चुनाव करीब आते-आते संभव है कि कुछ और पार्टियां इसमें शामिल हो जाएं। बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं। एनडीए में शामिल बिहार की सभी पार्टियां 5 या 6 सीटों से कम की डिमांड नहीं करेंगीं। हालांकि एनडीए में बिहार की जो भी पार्टियां शामिल हुई हैं, उनकी ऐसी स्थिति नहीं है कि उनके नेता भाजपा पर दबाव बनाकर ज्यादा सीटें ले सकें, लेकिन सभी पार्टियों को कम से कम बीस सीटें तो देनी ही पड़ेंगीं। यानि 40 सीटों में से लगभग आधी सीटें सहयोगी दलों के खाते में चली जायेंगीं।
आज भाजपा शायद इस बात से बहुत खुश हो रही होगी कि बिहार के अधिकांश छोटे दल उनके साथ आ गए हैं। भाजपा शायद इस बात से भी खुश हो रही होगी कि महागठबंधन कमजोर हो जाएगा। नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव कमजोर हो जाएंगे। यह तय है कि बिहार के जो भी दल आज एनडीए में शामिल हुए हैं, उनकी वजह से कुछ जातियों की वोटें महागठबंधन को कम मिलेंगी, लेकिन यह भी तय है कि सिर्फ उन्ही जातियों के बल पर बिहार की राजनीति का फैसला नहीं होता है।
साथ ही साथ यह भी तय है कि जिस जाति के नेता एनडीए में शामिल हुए हैं, उनकी अपनी ही जातियों पर उतनी पकड़ नहीं है जितना की वो नेता दावा कर रहे हैं। आज भी बिहार का एक बड़ा वोटर मुस्लिम शांत बैठा हुआ है। मुस्लिम वोटर बिहार की हर गतिविधियों पर ध्यान भी दे रहा होगा। जो दल आज एनडीए में शामिल हुए हैं ,उनके समर्थक मुस्लिम वोटर निश्चित ही अपना मन बदल लेंगे। यानी आज बिहार के छोटे-छोटे दल के जो नेता अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे हैं उन्हें चुनाव में जोर का झटका भी लग सकता है।
रही बात भाजपा की तो, उनकी पार्टी के जो नेता टिकट की उम्मीद लगाए बैठे हैं, वर्षों से सांसद बनने का सपना देख रहे हैं, उन्हें भी झटका लगेगा। उनके चेहरों पर भी मायूसी छाएगी,और ऐसे निराश भाजपाई नेता चुनाव से पहले कुछ और भी कदम उठा सकते हैं। लिहाजा ऐसा ना हो कि आज जो भाजपा बिहार के छोटे दलों को अपने खेमे में लेकर खुश हो रही है, कहीं उन्हीं पार्टियों के नेता भाजपा की हार के कारण ना बन जाएं।
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