कुछ नेताओं के बड़बोलेपन से गिर सकती है विपक्षी एकता की दीवार!
आगामी 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों का महाकुंभ होने जा रहा है।
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इस महाकुंभ में लगभग डेढ़ दर्जन पार्टी के मुखिया और कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों के शामिल होने की सूचना मिल रही है, लेकिन इस महाकुंभ में राजनैतिक डुबकी लगाने से पहले विपक्षी दलों के कुछ नेताओं के ऐसे बयान आ रहे हैं, जिसे सुनकर ऐसी आशंकाएं उत्पन्न होने लगी हैं कि कहीं ऐसा ना हो कि इस राजनीतिक महाकुंभ में एक साथ डुबकी लगाने के चक्कर में कुछ नेता किनारे ही बैठे रह जाएं। एकाद नेताओं की हठधर्मिता के चलते कुछ नेता किनारे बैठ कर एक दूसरे का मुंह ना ताकते रह जाएं।
23 जून विपक्षी पार्टियों के लिए बहुत ही अहम होने वाला है। इस बैठक के शुरू होने से पहले विपक्ष के कुछ नेताओं के जो बयान आ रहे हैं, उस पर अगर गौर किया जाए तो मामला गड़बड़ होने की पूरी तस्वीर दिखाई पड़ जाएगी। वैसे भी बैठक शुरू होने के पहले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंगलवार को जब अपना तमिलनाडु का दौरा रद्द किया था, तो विपक्षी पार्टी भाजपा ने उन पर सवाल उठा दिए थे। भाजपा के प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने यहां तक कह दिया था कि एकता से पहले ही उनकी गठबंधन की दीवार भरभरा कर गिर गई। अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक बयान के बाद विपक्ष को कुछ बोलने का मौका मिल गया है। अरविंद केजरीवाल ने कह दिया है कि बैठक में सबसे पहले दिल्ली में जारी अध्यादेश को लेकर बात की जाएगी। अरविंद केजरीवाल के मुताबिक दिल्ली में सर्विसेज के खिलाफ केंद्र की सरकार ने जो अध्यादेश जारी किया है उस पर चर्चा विपक्ष के नेताओं के साथ पहले की जाएगी।
अरविंद केजरीवाल का यह बयान निश्चित तौर पर विपक्ष के कुछ नेताओं को अच्छा नहीं लगा होगा, क्योंकि विपक्ष ने अभी तक अपना कोई संयोजक नहीं चुना है। निश्चित तौर पर जब विपक्षी पार्टियों की एकजुटता की बात होगी तो उसमें सबसे पहले एक संयोजक चुनने की रस्म अदायगी की जाएगी। संयोजक ही तय करेगा कि विपक्ष का कौन सा नेता कब और किस तरह का बयान देगा। ऐसे में वगैर संयोजक का चुनाव हुए अरविंद केजरीवाल ने अध्यादेश को लेकर जो बातें कहीं हैं, संभवत विपक्ष की एकता की सेहत के लिए ठीक नहीं होगा। उधर कुछ इसी तरह का बयान पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी दिया है। उन्होंने साफ तौर से कह दिया है कि अगर कांग्रेस ने सीपीआईएम से समझौता किया तो उनसे समर्थन की उम्मीद छोड़ दे।
ममता का यह बयान कांग्रेस के साथ-साथ कई अन्य दलों के नेताओं को भी बुरा लगा होगा। ममता बनर्जी को अच्छी तरह पता है कि बिहार में जो महागठबंधन बना है उसमें सीपीआईएम भी शामिल है। अब उस बैठक के शुरू होने से पहले नितीश कुमार का दौरा रद्द होना, ममता बनर्जी का सीपीआईएम को लेकर बयान देना, उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का यह कहना कि बैठक में सबसे पहले चर्चा अध्यादेश को लेकर होगी। इन सब को देखते हुए एक बात तो आसानी से समझी जा सकती है कि विपक्षी पार्टी का कोई भी नेता अपने आप को कमतर करके नहीं आंक रहा है। वैसे भी इस बैठक में शायद सबसे पहले चर्चा इस बात पर ही होगी कि विपक्षी दलों का जो गठबंधन होगा उसका नाम क्या होगा, और उसका संयोजक कैसे बनाया जाएगा।
लेकिन बैठक से पहले विपक्षी दलों के कुछ नेताओं के जो बयान आ रहे हैं उसे सुनकर न सिर्फ लाखों-करोड़ों लोग भ्रमित हो रहे होंगे, बल्कि विपक्ष को भी उनके ऊपर आरोप लगाने का मौका मिल रहा होगा। विपक्ष की इस बैठक पर पूरे देश भर के नेताओं की नजर है। उधर भाजपा की कोशिश यही होगी कि यह बैठक सफल ना हो। ऐसे में सही मायनों में अगर विपक्ष को एकजूट होना है तो उनके नेताओं को अपनी छोटी मोटी बातों को अपने पास ही रखने की आवश्यकता होगी। अगर वो सार्वजनिक तौर पर इसी तरह का बयान देते रहे तो विपक्षी एकता की सोच सिर्फ कल्पना बनकर ही रह जाएगी।
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