Patna में विपक्षी दलों की बैठक होने के पीछे की यह है असली वजह !
आगामी 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में विपक्षी दलों की बैठक होने जा रही है। इस बैठक में विपक्षी दल, 2024 लोकसभा के आम चुनाव को लेकर भाजपा के खिलाफ लड़ने की योजना बनाएंगे। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बैठक की अगुवाई कर रहे हैं।
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इस बैठक को लेकर तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। इसी बीच भाजपा ने यहां तक आरोप लगा दिया है कि जब नीतीश कुमार अपने घर को नहीं संभाल पा रहे हैं तो सारे विपक्षी दलों को एकजुट कैसे कर पाएंगे, लेकिन इन सबसे इत्तर एक बात कम ही लोग जानते होंगे कि विपक्षी दलों की बैठक पटना में ही क्यों हो रही है? उसकी अगुवाई नीतीश कुमार ही क्यों कर रहे हैं? पटना में होने वाली इस बैठक के पीछे की असली वजह जानकर हमारे अधिकांश पाठक भी हैरान हो जाएंगे, और संभव है कि पूरा लेख पढ़ने के बाद, लगभग 50 साल पहले के एक आंदोलन की पूरी कहानी उनके ज़ेहन में घूमने लगेगी।
उस कहानी की चर्चा करने से पहले आइए जान लेते हैं यह बैठक क्यों हो रही है, और इसमें कौन-कौन से नेता शामिल हो रहे हैं। बिहार की राजधानी पटना में होने वाली इस बैठक में कांग्रेस के अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन, सपा मुखिया और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, शिवसेना यूटीबी प्रमुख उद्धव ठाकरे इन्हीं के पार्टी के सांसद संजय रावत, वामपंथी दलों से सीता येचुरी, डी राजा, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन आदि शामिल हो रहे हैं।
पूरे देश को पता है कि भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पिछले कई महीनों से शिद्दत से लगे हुए हैं। जितने भी नेता इस बैठक में शामिल हो रहे हैं उन सभी नेताओं से नीतीश कुमार की पहले भी कई बार मुलाकातें हो चुकी हैं। उन नेताओं से मुलाकात के दौरान मौखिक तौर पर एकजुट होने के लिए कुछ योजना भी बना ली गई थी, लेकिन उन योजनाओं पर अभी तक औपचारिक रूप से मुहर नहीं लगी है। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि विपक्षी दलों के बीच अब तक जो भी बातें मौखिक तौर से हुई हैं, उसे अमलीजामा पहना दिया जाएगा। हालांकि इस बैठक पर भाजपा की भी निगाहें लगी हुई हैं।
चलिए, ये तो हो गईं बैठक की बातें। अब हम आपको बताते हैं कि यह बैठक पटना में ही क्यों हो रही है? जब कि यह बैठक वेस्ट बंगाल में हो सकती थी,महाराष्ट्र में हो सकती थी, झारखंड में हो सकती थी, मध्य प्रदेश, राजस्थान या किसी अन्य राज्य में भी हो सकती थी, लेकिन बिहार में हो रही है। दरअसल आज भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र की सरकार पर कथित तौर पर जो आरोप लग रहे हैं, यानी राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान वर्तमान की केंद्र सरकार पर यह आरोप लगाते हुए अपनी यात्रा पूरी की थी कि, वर्तमान सरकार के शासनकाल में महंगाई बढ़ रही है, सांप्रदायिक हिंसा बढ़ रही है। बेरोजगारी बढ़ रही है। जाति और धर्म के नाम पर एक दूसरे को लड़ाया जा रहा है। कुछ इसी तरह के आरोप आज से लगभग 50 साल पहले देश की तमाम विरोधी पार्टियों ने कांग्रेस की तत्कालीन सरकार पर लगाया था।
उस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री हुआ करती थीं। उन्ही की सरकार के खिलाफ 18 मार्च 1974 को बिहार की राजधानी पटना में छात्रों ने आंदोलन किया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि छात्रों के आंदोलन में पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव भी शामिल थे। उस समय छात्रों के आंदोलन पर लाठीचार्ज हुआ था। कई छात्रों की मौत हो गई थी, जबकि दर्जनों छात्र घायल हो गए थे। बाद में छात्रों के आग्रह के बाद जयप्रकाश नारायण ने उनके आंदोलन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी ली थी, लेकिन उन्होंने छात्रों के सामने एक शर्त रख दी थी कि इस आंदोलन में कोई भी ऐसा व्यक्ति शामिल नहीं होगा जो किसी पार्टी से जुड़ा हो। पटना की धरती से शुरू हुआ हुआ वह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया था, उस आंदोलन के बाद इंदिरा गांधी को अपनी सत्ता गंवानी पड़ी थी।
आज की तरह उस समय सोशल मीडिया और टेलीविजन इतना सक्रिय नहीं था वरना उस आंदोलन को आजादी के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन मान लिया जाता। बहरहाल विपक्षी दलों को शायद ऐसा महसूस हुआ होगा कि किसी ऐसे ही सत्ता को हटाने के लिए बिहार की धरती से शुरू हुए आंदोलन से सफलता मिल गई थी, लिहाजा संभव है कि इस बार भी वर्तमान की सत्ता को हटाने में पटना की धरती कारगर साबित हो, लेकिन यहां सवाल यह पैदा होता है कि 1974 में जिस तत्कालीन सरकार को हटाने के लिए आंदोलन की शुरुआत हुई थी, वह कांग्रेस की ही सरकार थी। जबकि इस बैठक में शामिल होने वाले दलों में ना सिर्फ कांग्रेस शामिल है बल्कि सबसे बड़ी पार्टी भी है। अब देखना यह होगा कि पटना की धरती से मूर्त रूप लेने वाला विपक्षी दलों का यह संगठन कितना कारगर साबित होता है, और 2024 के लोकसभा चुनाव में विपक्षी दलों को कितना फायदा मिलता है।
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