आराध्य पात्रों से खिलवाड़ करने की कोशिश क्यों की गई आदिपुरुष फ़िल्म में?

Last Updated 17 Jun 2023 12:59:27 PM IST

आदिपुरुष फिल्म को देखने की जिन-जिन लोगों ने उम्मीदें पाल रखीं थीं, उनकी उम्मीदों पर पानी फिर गया, बल्कि देश के लाखों करोड़ों दर्शक अपने आराध्य हनुमान जी के मुख से जिन शब्दों की अपेक्षा कर रहे थे, उन्हें भी घोर निराशा हुई।


adipurush poster

 महावीर, महाबलशाली और महाज्ञानी जैसे उप नामों से पूजे जाने वाले पवन पुत्र हनुमान जी जब फिल्म में, अज्ञानी, मूर्खों और अशिक्षित लोगों की तरह बात करते हैं, तो हजारों लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। सिनेमा हॉल में बैठे हजारों लाखों दर्शक शायद यह सोचने लगते हैं कि किस मूर्ख लेखक ने हनुमान जी के मुख से इस तरह के निम्न स्तरीय शब्दों का उच्चारण करवाया है। आदि पुरुष फिल्म को भव्य बनाने के चक्कर में इस फिल्म के डायरेक्टर ओम राउत और प्रोड्यूसर भूषण कुमार ने पवित्र ग्रंथ रामायण की बुनियाद को ही हिलाने की कोशिश की है। इस फिल्म के डायलॉग मनोज मुंतशिर ने लिखा है। हालांकि अब इन्होंने अपना नाम तो वही रखा है, लेकिन अपने सरनेम में शुक्ला लगा दिया है। इसलिए अब इनका पूरा नाम हो गया है मनोज मुंतशिर शुक्ला।  ऐसा करने के पीछे उनकी जरूर कोई मंशा रही होगी, लेकिन हमें उनके सरनेम बदलने से कोई आपत्ति नहीं है, और ना ही उनके सरनेम को लेकर कोई बात करनी है। फिल्म में बहुत से डायलॉग हो सकते हैं, लेकिन कुछ डायलॉग पर ध्यान आकर्षित करना बेहद जरूरी हो जाता है, जैसे कि जब हनुमान जी लंका जाते हैं, वहां पर उन्हें बंदी बनाया जाता है।

लंकापति रावण के समक्ष उन्हें पेश किया जाता है। उन्हें सजा के तौर पर पूंछ में आग लगाने का आदेश दिया जाता है। उस वक्त मनोज मुंतशिर साहब ने हनुमान जी के मुख से जो कुछ भी बुलवाया है, वह इस प्रकार है, हनुमान जी कहते हैं, कपड़ा तेरे बाप का, तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, तो जलेगी भी तेरे बाप की। सिनेमा हॉल में बैठे हजारों दर्शक हनुमान जी की एंट्री पर उनके मुख से किसी सभ्य, सुसंस्कृत और सात्विक संवाद की कल्पना कर रहे थे, लेकिन जब हनुमान जी के मुख से सड़क छाप या टपोरी जैसे डायलॉग निकलने शुरू हुए तो दर्शकों ने अपना-अपना सर पकड़ लिया। जिस इंद्रजीत की बहादुरी और उसकी ताकत की चर्चा पूरे रामायण में की गई है, उसके मुख से भी जब इस तरह के डायलॉग आए कि  जली ना, तो दर्शकों की रही सही उम्मीदें भी खत्म हो गईं।

 इस फिल्म को ओम राऊत ने निर्देशित किया है जबकि भारत भूषण ने इसे प्रोड्यूस किया है। बरसों से दुनिया भर के लोग, जिनकी आस्था रामायण और रामचरितमानस में  रही है, उन सब ने रामायण के सभी पात्रों को लेकर अपने- अपने दिलों में एक इमेज बना रखी है। रामचरितमानस और रामायण के प्रति आस्था रखने वाले लोग शायद कभी भी उस इमेज से खिलवाड़ होते हुए नहीं देख सकते हैं। ऐसे में एक बात समझ में नहीं आती है कि फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ने ऐसी गलती करने की कोशिश क्यों की? लोगों की आस्था से खिलवाड़ करने की कोशिश क्यों की? तकनीकी तौर पर दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है। आज की युवा पीढ़ी भी आधुनिक तकनीकी से प्रभावित हो रही है। नई-नई तकनीकों के जरिए बहुत सी चीजें बनाई जा रही हैं, जिन्हें लोग पसंद भी कर रहे हैं, तो क्या इन्ही सबको देखते हुए फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ने कहीं यह तो नहीं मान लिया कि आज की युवा पीढ़ी भी रामायण के पात्रों को भी जज करने में तकनीति  पहलू पर ध्यान देगी।

आदि पुरुष फिल्म के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर ने अगर ऐसा मान लिया होगा, तो उनसे हजारों सवाल पूछना चाहिए कि क्या भगवान भी बदल सकते हैं? उनसे यह  जरूर पूछना चाहिए कि तकनीकी तौर पर विकास हो जाने के बाद, क्या राम और हनुमान की भाषा शैली में भी बदलाव आ जाएगा? आदिपुरुष फिल्म में रामायण के पात्रों के साथ जो खिलवाड़ किया गया है, वह मामूली बात नहीं है, और ना ही इस फिल्म से जुड़े हुए लोगों द्वारा माफी मांगने या सफाई देने भर से काम चलने वाला है। आदि पुरुष फिल्म के जरिए फिल्म से जुड़े लोगों ने जो कुकृत्य किया है,उसके लिए उन्हें देश की धर्म संसद में बुलाकर उन्हें दंडित करना चाहिए। देश के तमाम धार्मिक संगठनों को, उन्हें दंडित कर पूरे देशवासियों को एक संदेश देने की कोशिश करनी चाहिए, ताकि दोबारा कोई व्यक्ति उन ग्रंथों के पात्रों को लेकर कोई ऐसी उल्टी-पलटी बातें ना लिखें और ना ही उस पर फिल्म बनाएं, ताकि भविष्य में कोई दूसरा व्यक्ति दोबारा ऐसी छेड़छाड़ करने की हिम्मत ना कर पाए।

शंकर जी विश्वकर्मा
नई दिल्ली


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