समय से पहले क्यों हो सकते हैं लोकसभा के आम चुनाव?
केंद्र सरकार की नौ साल की उपलब्धियों को बताने को लेकर विपक्षी खेमे में खलबली मची हुई है। केंद्र सरकार के मंत्री से लेकर बड़े-बड़े पदाधिकारी इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन विपक्षियों की नींद उडी हुई है।
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तमाम पार्टी के नेता इसको लेकर अलग-अलग कयास लगा रहे हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम् के स्टालिन ने तो यहां तक कह दिया है कि भाजपा लोकसभा का आम चुनाव समय से पहले ही कराने की तैयारी कर रही है। आखिर क्या है भाजपा की रणनीति?आमतौर पर पांच साल या दस साल की उपलब्धियों को लेकर सत्ताधारी पार्टियां जनता के बीच जाती रही हैं, लेकिन इस बार भाजपा ने नौ साल की उपलब्धियों को बताकर सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है।
समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने की चर्चा यूं ही नहीं हो रही है। पिछले कुछ महीनों से भजापा के लिए बहुत अच्छा नहीं हो रहा है। कुछ महीनों के अंदर भाजपा दो राज्यों, हिमाचल और कर्नाटक का चुनाव हार चुकी है। इसी वर्ष के अंत तक देश के पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। जिसमें मुख्य रूप से तीन राज्य मध्यप्रदेश ,छत्तीसगढ़ और राजस्थान भाजपा के लिए बड़े ही महत्वपूर्ण हैं। हालांकि चुनौती कांग्रेस के लिए भी है, लेकिन असली चुनौती भाजपा के सामने है, क्योंकि उन्हें केंद्र की सत्ता को बचाना है। अगर खुदा न खास्ता उन तीनों राज्यों में भाजपा की हार हो जाती है तो आने वाले लोकसभा चुनाव में मुश्किलें पैदा हो सकती हैं। अब भाजपा की कोशिश होगी कि आगामी लोकसभा चुनाव से पहले किसी भी राज्य में उसकी हार न हो, लेकिन सब कुछ पार्टी के हाथ में भी नहीं है।
केंद्र में मोदी की भले ही धमक हो लेकिन राज्यों के चुनाव में बहुत कुछ वहां के स्थानीय नेताओं और स्थानीय सरकार के क्रियाकलापों पर निर्भर करता है। स्थानीय नेताओं और स्थनीय सरकार का कितना असर पड़ता है इसका परिणाम पार्टी ने कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में देख लिया। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत भाजपा के तमाम मंत्रियों ने उन दोनों राज्यों में प्रचार किया था। आम तौर पर अब तक यही माना जाता रहा है कि मोदी की वजह से पार्टी को बहुत फायदा होता है, लेकिन वह भ्रम भी उन राज्यों में हुए चुनाव परिणाम के बाद टूट गया। साथ ही साथ अब तक जिस हिंदुत्व को लेकर भाजपा चुनाव जीतती आयी है, वह हिंदुत्व भी उन राज्यों के चुनाव में काम नहीं आया।
इन सबको देखते हुए अभी कुछ दिन पहले आरएसएस के मुखपत्र कहे जाने वाले ऑर्गनाइजर मैगजीन ने अपने सम्पादकीय के जरिए यह बता दिया था कि अब सिर्फ मोदी और हिंदुत्व के नाम पर चुनाव जितना संभव नहीं होगा। अगर चुनाव जीतना है तो पार्टी को इसके आगे जाकर सोचने की जरुरत है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व निश्चित तौर पर इस बात को लेकर चिंतित होगा। इस पर विचार कर रहा होगा। शायद उसी विचार का परिणाम नौ साल की उपलब्धियां बताना है। साथ ही साथ भाजपा ने जो टिफिन बैठक शुरू की है, वह भी उसी दिशा में बढ़ाया गया एक कदम है। भाजपा के रणनीतिकार यह जरूर सोच रहे होंगे कि अगर समय पर लोकसभा चुनाव हुआ तो क्या होगा और पहले करा दिया गया तो क्या होगा। इसको लेकर पार्टी के अंदर गुना भाग चल रहा होगा।
दो राज्यों में चुनाव हारने के बाद आज संभव है कि देश भर में एक एंटी भाजपा माहौल बनने लगा हो। अगर ऐसा है तो इसी साल जिन राज्यों में चुनाव होने है, वहां संभव है कि भाजपा को सफलता ना मिले। ऐसे में वगैर ज्यादा नुकसान के भाजपा की कोशिश होगी कि वह लोकसभा का आम चुनाव समय से पहले करा दे। भाजपा को यह भी पता है कि अभी विपक्षी पार्टियों की सहमति नहीं बन पायी है। वो भले ही एक दूसरे से मिल रहे हैं, लेकिन उनके गठबंधन पर अभी औपचारिक मुहर नहीं लगी है। ऐसे में भाजपा यह जरूर चाहेगी कि गठबंधन से पहले वह कोई ऐसी चाल चल दे जिससे कि सभी विपक्षी पार्टियां देखती रह जाएं। उनको इतना समय न मिल पाए कि वह गठबंधन को अमलीजामा पहना सकें।
यह हकीकत है कि इस समय सभी पार्टियों की निगाह आगामी लोकसभा के चुनाव पर लगी हैं। सत्ताधारी पार्टी भाजपा हो या विपक्ष, सभी अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लगे हुए हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम् के स्टालिन ने शायद इन सभी गतिविधियों को देखते हुए समय से पहले चुनाव कराने की आशंका व्यक्त कर दी है। फिलहाल अभी जो माहौल चल रहा है उसे देखते हुए स्टालिन की आशंका निर्मूल नहीं है। हो सकता है कि उनके जैसी आशंका अन्य पार्टी के नेताओं के मन में भी हों, लेकिन उन्होंने उजगार न किया हो। फिलहाल स्टालिन की आशंका को भाजपा के साथ-साथ विपक्ष की अन्य पार्टियां भी समझ रही होंगी। संभव है कि विपक्ष भी अपने गठबंधन को आगामी 23 जून को पटना में होने वाली बैठक के दौरान असली रूप दे दे, क्योंकि उस बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे के अलावा विपक्ष के बड़े-बड़े नेता शामिल होने वाले हैं।
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