सबको भाया रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का दार्शनिक अंदाज
देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह अच्छे वक्ता हैं। किसी भी मुद्दे पर वो बड़ी संजीदगी से बात करते हैं। मुद्दा राजनैतिक हो या उनके मंत्रालय का,सब पर उनकी प्रतिक्रया बड़ी सधी हुई आती है। वो अक्सर राजनैतिक विषयों पर भाषण करते हुए देखे जाते हैं, लेकिन एक कार्यक्रम के दौरान उनका दूसरा रूप देखने को मिला। उनका एक अंदाज और एक अलग मिजाज देखने को मिला। उन्होंने संयुक्त परिवार और एकल परिवार के टूटने के बाद होने वाली समस्याओं पर चिंता व्यक्त की।
![]() रक्षामंत्री राजनाथ सिंह |
दरअसल राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान अकादमी के स्थपना दिवस के अवसर पर आयोजित कार्य्रक्रम में वर्चुअली बोलते समय राजनाथ सिंह का दार्शनिक रूप देखने को मिला। यहां उन्होंने संयुक्त और एकल परिवार को लेकर चिंता व्यक्त की। संयुक्त परिवार को लेकर कहा कि संयुक्त परिवार की परिकल्पंना तो अब ख़तम ही गई। जबकि एकल परिवार भी टूटने लगे हैं। उन्होंने अपने द्वारा पढ़ी गई एक बड़ी ही मार्मिक लाइन, "पेड़ गाँव में ही रह जाता है और फल शहर चला जाता है", का जिक्र करते हुए कहा की यह लाइन हमारे वर्तमान समाज को बड़ी ही बारीकी से व्यक्त करती हैं। जाने अनजाने ही सही, लोग अपने घर- परिवार से दूर होते जा रहे हैं। लोग शहर गए वहीं कमाने लगे। कभी जरूरतों, तो कभी मजबूरियों के चलते बूढ़े माँ- बाप गाँव में ही रह गए।
संयुक्त फैमली खंडित होने के पीछे का कारण, उन्होंने वेस्ट्रन कल्चर को बताते हुए कहा कि उसी कल्चर की वजह से न्यूक्लियर फैमली का चलन बढ़ा। कुछ लोगों ने दलील देना शुरू कर दिया था कि संयुक्त फैमली में युवाओं को प्रॉपर स्पेस नहीं मिल पाता था, इसलिए न्यूक्लियर फैमली का चलन बढ़ा। राजनाथ सिंह ने यूक्लियर फैमली को भी कुछ हद तक ठीक कहा, लेकिन उनकी चिंता इस बात की है कि अब न्यूक्लियर फैमली भी टूटने लगी है। अब सिंगल पैरेंटिंग भी देखने को मिलने लगी है। उन्होंने आशंका व्यक्त की है कि अगर इस गति को नहीं रोका गया तो, समाज में विवाह की संकल्पना ही ख़तम हो जाएगी।
राजनाथ की चिंता यहीं तक नहीं थी। उन्होंने आगे कहा कि भले ही यह मामला स्वतंत्रता जैसा प्रतीत हो रहा हो, लेकिन वास्तव में यह मनुष्य को अकेलेपन की ओर धकेलने वाला सामाजिक संकट है, जिससे बचने की आवश्यकता है। राजनाथ सिंह ने डाक्टरों की सलाह को अपने वक्तव्य में शामिल करते हुए कहा कि अकेलापन शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक समस्यायों का मूल कारण है।
राजनाथ सिंह के इन विचारों की चारों तरफ चर्चा हो रही ! क्योंकिं देश के लोगों ने उन्हें राजनीती पर बोलते हुए सैकड़ो बार सुना है, लेकिन शायद पहली बार उन्होंने दार्शनिक अंदाज में अपनी बातें रखीं। राजनाथ सिंह ने अपने वक्तव्य में जिन मुद्दों को छूने की कोशिश की है, वो अत्यंत ही गंभीर हैं। भारत की संस्कृति और सभ्यता में परिवार और रिश्तों का एक अलग ही महत्व है। राजनाथ सिंह की चिंता वेवजह नहीं है। उन्होंने अपनी चिंता से लोगों को आगाह करने की कोशिश की है। अब तय करना है देश के लोगों को, अब सोचना है देश के लोगों को, कि क्या वो एक ऐसे देश में रहने की कल्पना कर सकते हैं जहां परिवार और रिश्तों की कोई जगह ही ना हो।
| Tweet![]() |